यार! अब मन न कहीं लगे।
अपलक देखूँ, व्योम निहारूँ,
आतुर होकर तुम्हें पुकारूँ;
अहो! हुए तुम इतने निष्ठुर,
तुम्हारी, चुप्पी क्यों न खले?
सारे वचन तोड़ बैठे हो,
अपने नयन फोड़ बैठे हो;
किसने प्रियतम मति है फेरी
अकिंचन, हम रह गए ठगे!
कल तक सब कुछ उत्सवमय था,
जीवन कितना सुमधुर लय था;
हुए पराये तुम पल भर में,
बरसों, आधी नींद जगे।
प्यार! अब मन न कहीं लगे।
मन लगाओ।
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