सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

आओ रक्तदान करें।


यूँ तो बड़ा बहुत पहले हो गया था पर बड़ा होने का एहसास आज पहली बार हुआ। आज मैंने रक्तदान किया है पहली बार, बड़ी उत्सुकता थी की कैसा अनुभव होता है जब खून निकलता है, दर्द होता है या नहीं होता है? सच कहूँ तो पता ही नहीं चला। सूई चुभने जैसा  दर्द हुआ फिर सब सामान्य हो गया।
बहुत अच्छा लग रहा है, कभी इतनी ख़ुशी नहीं मिली जितनी आज मिली है..लगा है की पहली बार ज़िन्दगी में कुछ अच्छा किया है।
ये ख़ुशी बहुत प्यारी है, आप भी रक्तदान कीजिये....ख़ुशी मिलेगी।

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

सिर्फ तुम्हारे लिए

कई चाहत दबी दिल में,
जो अक्सर टीस भरती हैं,
मेरे ख्यालों में आकर
मुझी को भीच लेती हैं ,
कई राहों से गुजरा हूँ
दिलों को तोड़कर अक्सर,
मगर कुछ ख़ास है तुझ में,
जो मुझको खींच लेती है.''


(कभी आपने मुझे मंच पर गीत गाते हुए नहीं देखा है न? ये रही मेरी तस्वीर सोचिये कि माइक मेरे हाथ में है और मैं गा रहा हूँ।)

तुम्हारी आँख लगती है
तो आँखे बंद होती है,
तुम्हारी नींद खुलती है
तो साँसे मंद होती है,
अजब है हाल -ए-दिल मेरा
जुड़ा हूँ जब से मैं तुमसे,
मेरे दिल के धड़कन से
मेरी ही जंग होती है.

मेरे ख्यालों से अब निकलो,
ये दुनिया भी तो खाली है,
है खुशियों का यहाँ मंज़र
समझ लो कि दिवाली है,
मेरी अँधेरी दुनिया को
मेरे ही पास रहने दो,
उम्मीदों कि ये जो लौ है
वो अब बुझने वाली है.

यहाँ जब भी हवा चलती
तो आँखे नम सी होती हैँ,
तुम्हे जब सोचता हूँ मैँ तो
रातेँ कम सी होती हैँ,
अजब है गम का भी आलम
न कुछ कह के कह पाऊँ,
तुम्हारे बिन मेरी दुनिया
बड़ी बेदम सी होती है.
(बिना प्यार किए प्यार लिखना मुश्किल होता है न?)

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

बाल श्रम और अभिजात वर्ग

बालश्रम; समाज का कोढ़ जिसे मिटाने की जगह अभिजात वर्ग खाद-पानी डालने का काम करता है।बच्चे हमेशा सस्ते होते हैं बशर्ते अपने न हों। वैसा भी सुना है बड़े लोग अपने बच्चों से कोई काम नहीं कराते क्योंकि उनके बच्चे फूल से नाजुक होते हैं और गरीबों के बच्चे पैदायशी चट्टान जिनका काम ही पहाड़ तोडना होता है। हाँ बच्चे चट्टान नहीं होते हैं पर गरीबी बना देती है।
बड़े लोग अपने बच्चों को धूल-मिटटी से बचाते हैं जिससे इन्हें इन्फेक्शन न हो, धुप से बचाते हैं कहीं रंग न काला हो जाए। हाँ भाई रंग का भी बड़ा खेल है ज़माने में, बच्चा तो गरीब का भी गोरा होता है पर कब अपने नसीब की तरह काला हो जाता है पता ही नहीं लगता।
अमीर माँ-बाप का बच्चा कोई काम नहीं करता है क्योंकि अगर वो काम करेगा तो लाड-प्यार में कमी रह जायेगी। ये सारे ढोंग और तमाशे उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों के हैं या अभिजात वर्ग के जिनके घरों को अक्सर "बड़ा घर" कहा जाता है।
यूँ तो यही लोग ढोंग पीट-पीट कर कहते हैं कि बालश्रम अपराध है इसे रोकें पर खुद इनके घरों में काम करने वाले बच्चों की उम्र सात से चौदह वर्ष तक से कम  की होती है। शहरों में मज़दूरी भले ही मंहगी हो पर बचपन तो सस्ता है। काम बड़ों से ज्यादा लिया जाता है लेकिन मज़दूरी मिलती है कौड़ी भर।
बच्चों को child labour (protection and regulation) act 1986 ने जो राहत दी है, जो बालश्रम को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बना है उसे देखकर तो गश आता है। परस्पर विरोधाभास है क्या कहा जाए?
एक तरफ कहा कहा गया है कि बालश्रम अपराध है दूसरी तरफ उनके काम करने का समय और छुट्टियों का प्रावधान नियत किया गया है। यह कैसा गड़बड़-झाला है जो समझ में नहीं आता।
कुछ परिस्थियों को आधार ठहरा कर बालश्रम को वैध किया गया है।
बच्चे घरेलू काम कर सकते हैं, सच तो ये है कि अमीरों के घरों में गरीब बाल मज़दूरों का सबसे ज्यादा शोषण होता है। शोषण का कोई दायरा तय नहीं है यह किसी भी प्रकार का हो सकता है। आर्थिक,शारीरिक या यौन शोषण..बच्चे हैं किसी से कहेंगे थोड़े ही। कुछ चॉकलेट, टॉफी और कपडे काफी हैं उन्हें मानाने के लिए। किसी से कहें भी तो कौन सुनेगा इनकी? बच्चों की अवाज़ बड़ों तक पहुँचती कब है?