रविवार, 22 सितंबर 2013

फितरत



हम जीते हैं,
झूठे ख्वाबों के सहारे
जिन्दगी,
न कोई रास्ता
न कोई मंजिल
भटकना है,
अनजान राहों पर,

बसाना चाहते हैं,
इक नयी
दुनिया,
अपने
वजूद को मिटाकर ,
नफरत , धोका, फरेब,
घुटन सी होती है,
दुनिया को देखकर,
न वफ़ा ,
न सच्चाई,
हर तरफ,
नफरत, नफरत,
सिर्फ नफरत,
हैवानियत के आलम में,
पहचान खोती,
इंसानियत,
किश्तों में
दम तोड़ी ख्वाहिशें ,
अजीब सी बेचैनी,
जिन्दगी से
नफरत,
पर
बेपनाह मोहब्बत,
सुकून की तलाश,
पर मिलती ,
सिर्फ कशमकश,
कुछ होना

होने के जैसा है,
कैसी जिन्दगी है,
हम इंसानों की?