रविवार, 4 फ़रवरी 2024

मन का बंधन झूठ है

 कौन किसी के पास है, कौन किसी से दूर
किससे नाता नेह का, कौन यहां मजबूर?

किसका बंधन झूठ है, किसका बंधन सांच
कौन मोह में तप रहा, किसका नाता कांच?

कौन यहां मजदूर है, कौन यहां मलिकार
कौन बिराजे राजघर, कौन सहे फटकार?

मन बस निज से दूर है, मन बस निज के पास
मन से नाता नेह का, मन ही सबका खास।

मन का बंधन झूठ है, मन का बंधन सांच,
मनवा मन में तप रहा, मन का नाता कांच।

मन जग में मजदूर है, मन ही है मलिकार,
मनहि बिराजे राजघर, मन ही सहे फटकार।।

मन में लाखों झोल हैं, मन कितना अनजान,
मन में बइठा चोर है, मन बड़का बइमान।।


- अभिषेक शुक्ल

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद शानदार, सारगर्भित दोहे,सराहनीय सृजन सर।
    सादर
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ६ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. मन में लाखों झोल हैं, मन कितना अनजान,
    मन में बइठा चोर है, मन बड़का बइमान।।
    वाह!!!
    बहुत सटीक एवं लाजवाब सृजन ।

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