गुरुवार, 11 जुलाई 2013

अज्ञात

रात होती तो ये लगता,
           नया होगा कुछ सवेरे ,
कर्म की प्रतिबद्धता में
            भाग्य लेगा पुनः फेरे,
यह सुहानी रात तो,
         हृदय तक आलस्य लाये
बंद कर पलकें हमारी,
            नित नए सपने दिखाए,
बंद आँखों से धरा की,
             जो गहन अनुभूति होती,
विधाता के राग-लाया में ,
              मानव की नेति-नेति,
वह विहंगम दृश्य  नभ का,
               निष्प्राण में भी प्राण लाये,
और बिन एक  शब्द बोले,
                शब्द अंतस तक समाये,
नमन है उस शक्ति को,
                 जिसने धरा पर प्राण फूकें,
जिनके अहैतुक कृपा से,
                  धरा निज उद्द्यान  सींचे.