प्राचीन भारतीय दर्शन के अनुसार धर्म की एक बहुत सुन्दर सी परिभाषा है-"जो धारण करने योग्य है वही धर्म है।"
प्रश्न यह उठता है कि धर्म के लक्षण क्या हैं? इन लक्षणों को मनु ने इस प्रकार है बताया है-
"धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं
शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं
धर्मलक्षणम्।
अर्थात- धैर्य, क्षमा, दम(दुष्प्रवित्तियों पर नियंत्रण), अस्तेय, आंतरिक तथा बाह्य शुचिता, इन्द्रिय निग्रहः, बुद्धिमत्ता पूर्ण आचरण, विद्या के लिए तीव्र पिपसा, मन,कर्म तथा वचन से सत्य का पालन करना, क्रोध पर नियंत्रण ये धर्म के दस लक्षण हैं।
आज संसार के किसी भी धर्म में इन लक्षणों का दूर-दूर तक कहीं समावेश नहीं है। भारत जिसे धर्मों का संगम कहा जाता है, जहाँ सदियों से अलग-अलग धार्मिक संस्कृतियां पुष्पित और पल्लवित होती रही हैं, जिस देश ने विश्व के सभी धर्मों के अनुयायियों को संरक्षण प्रदान किया उसी भारत में आज धार्मिक कलह से भारतीयता आहत है।
हर धर्म के अनुयायी उस धर्म की मूल भावना से परे हटकर कुरूतियों को धर्म कहकर देश में धार्मिक कटुता का बीज बो रहे हैं। अब देश में भारतीय खोजना मुश्किल हो गया है। हिन्दू और मुसलमान तो गली-चौराहों पर मिल जाते हैं पर भारतीय विलुप्तप्राय हो गए हैं। सरकार को भारतियों के संरक्षण के लिए कोई बिल पास करना चाहिए ये संकटग्रस्त प्रजाति है।
देश में अलग-अलग जगहों पर पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट के झण्डे फहराये जा रहे हैं, हिंदुस्तान मुर्दाबाद और पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाये जा रहे हैं। जिस देश में खाने के लिए लाले पड़ रहे हों जो खुद दहशत के आग में जल रहा हो उसके अनुयायी भारत में कहाँ से आये ये सोचने वाली बात है। ऐसी कौन सी बात है जिससे आहत हो लोग वतन से गद्दारी कर रहे हैं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है। हिन्दू और मुसलमान में नफ़रत इस कदर बढ़ गयी है कि जगह-जगह से सांप्रदायिक तनाव की ख़बरें आ रही हैं। ऐसी धार्मिक असहिष्णुता कभी नहीं थी जिनती अब हो गयी है। ऐसी विषाक्त परिस्थितियों को देखकर देश की आत्मा व्यथित है।
कोई धर्म देश से गद्दारी नहीं सिखाता। किसी भी धर्म की शिक्षाएं मानवता को शर्मसार नहीं करती पर धर्म के ठेकेदारों को कौन समझाए? आज धार्मिक उन्माद का मुख्य कारण धार्मिक राजनीति है। नफरत उगाई जा रही है और दहशत की फसलें काटी जा रही हैं।
हर धर्म में एक से बढ़कर एक संप्रादियिक तनाव पैदा करने वाले चेहरे हैं जो केवल ज़हर ही उगलते हैं।
धर्म की राजनीति करने वाले इन असहिष्णु लोगों को ये नहीं पता है कि धर्म का उद्देश्य क्या है।
"श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव
अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न
समाचरेत् ॥"
धर्म का सर्वस्व क्या है? उसे समझो और वैसा आचरण करो। जो आचरण तुम्हारे लिए प्रतिकूल हो उसे दूसरों के साथ मत करो।
धर्म का आशय क्या है? धर्म क्या है? आचरण क्या है? पाप क्या है? कुछ नहीं पता पर सब स्वयं को धार्मिक कहते हैं।
जो व्यवहार अपने अनुकूल न हो वैसा आचरण किसी दुसरे के साथ नहीं करना चाहिए। यदि ऐसा करना प्रवित्ति है तो यह पाप है।
किसी भी धर्म का उत्थान हिंसा से असंभव है। जो धर्म सबसे अधिक उदार होगा,समरसता पूर्ण होगा और मानवीय होगा वही अस्तित्व में रहेगा। किन्तु कोई भी इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
जब धर्म राष्ट्र भक्ति में बाधक बने तो उसे त्याग देना चाहिए। क्योंकि जो व्यक्ति अपने मातृभूमि से गद्दारी कर सकता है वह किसी भी धर्म या संस्कृति का पोषक नहीं हो सकता है।
आज पूरे विश्व में आगे बढ़ने की होड़ मची है। कोई मंगल पर तो कोई प्लूटो पर जाने की तैयारी कर रहा है पर एशिया धर्म संरक्षण में कट-मर रहा है। ऐसे धर्म की प्रासंगिकता क्या है जिसमें मानवता लेश मात्र भी न बची हो?
सनातन धर्म की एक प्रचलित सूक्ति है-
"हिंसायाम् दूरते यस्य सः सनातनः।"
आर्थात मन से,वचन से और कर्म से जो हिंसा से दूर है वही सनातन है। जो कर्म प्राणी मात्र को कष्ट दे वह हिंसा है। जो हिंसक है वह सनातनी नहीं है...मानव भी नहीं है। यह कथन सभी धर्मीं के अनुयायियों को समझना चाहिए।
क्या जो लोग ऐसे धार्मिक उन्माद पैदा करते हैं जिससे देश में आतंरिक कलह पैदा होता है उन्हें धार्मिक कहा जा सकता है? ये सत्ता लोलुप लोग हैं किसी भी धर्म से इनका कोई मतलब नहीं है।
न ये हिन्दू हैं न मुसलमान हैं कोई और ही धर्म है इनका। शैतान इन्हें ही कहते हैं शायद।
कुछ मुसलमान इस देश की सरकार से असंतुष्ट लोग पाकिस्तान के बरगलाने की वजह से वतन से ग़द्दारी कर पूरे इस्लाम को कठघरे में खड़ा करते हैं। पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाने वाले लोग, देश से ग़द्दारी करने वाले लोग न तो मुसलमान हैं न हिंदुस्तानी।
गद्दारों की कोई कौम नहीं होती है। इस देश को धर्मों में बाँटने वाले लोग ये क्यों भूल जाते हैं जब कलाम साहब विदा लेते हैं वतन से तो पूरा देश रोता है। जब क़साब को,अफज़ल गुरु को और याक़ूब को फाँसी होती है तो देश में लड्डू बंटता है।
कोई भी इंसान वतन से ग़द्दारी करके महान नहीं बनता काफ़िर जरूर बन जाता है। ऐसी हरकतों से न ईश्वर खुश हो सकते हैं न ख़ुदा।
भारतीय दर्शन राष्ट्ररक्षा को ही धर्म मानता है। मंदिरों में कोई भी यज्ञ,हवन की पूर्णाहुति तब तक नहीं होती जब तक "भारत माता की जय" नहीं बोला जाता। देशभक्ति संसार के सभी धर्मों से श्रेष्ठ है। धर्म द्वितीयक हो तथा राष्ट्र प्राथमिक तो समझिये आप ईश्वर के सच्चे उपासक हैं।
आप हिन्दू, मुसलमान या इसाई हों पर भारतीय होना न भूलें। देश से वफ़ादारी करने वालों पर हर मज़हब के खुद को फ़ख़्र होता है।आइये आप और हम मिलकर देश को मज़बूत बनायें,प्रगतिशील बनायें..विकसित बनायें। हम हिंदुस्तानी हैं। विश्व बंधुत्व का पाठ हम दुनिया को पढ़ाते हैं यदि हम सांप्रदायिक दंगे करेंगे, धार्मिक उन्मादी बनेंगे तो हमारे देश की साझा संस्कृति को कितना ठेस पहुंचेगा।इक़बाल साहब ने बहुत सही बात कही है-
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ
हमारा।।
हम सब एक हैं। एक ही माँ के बेटे हैं। क्या हुआ हमारे पूजा की पद्धतियाँ अलग हैं...हमारा देश तो एक है..हमारी माँ तो एक है।
संसार की प्राचीनतम् सभ्यता जब बर्बरता का ताण्डव देखेगी तो क्या उसका ह्रदय नहीं फटेगा?
आओ इस महान संस्कृति को क्षत्-विक्षत् होने से रोकें। इस देश की आत्मा को व्यथित न होने दें...आओ "वसुधैव-कुटुम्बकम्" की भावना को विकसित करें..हम सब मिलकर रहें...अपने राष्ट्र को एक आदर्श राष्ट्र बनायें जिससे पूरी दुनिया बोल पड़े-
"सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ताँ तुम्हारा।"
जय हिन्द! वन्दे मातरम्।
-अभिषेक शुक्ल।