कितना मुश्किल है न
घर छोड़ना?
यादों से भागकर
यादें बन जाना
अपनों से
अजनबी हो जाना
थोड़े पैसे
और
शोहरत के लिए
दूर निकल आना
अपनी
मिट्टी से
जिसमे कैद है
बचपन की सुनहरी यादें;
उन नज़रों से
ओझल होना
कितना मुश्किल
है न
जिन्हें देखे बिना
अधूरी लगती हो
जिंदगी,
उन्हें तन्हा छोड़ कर
आगे बढ़ जाना
कितना
मुश्किल है न
घर छोड़ना?
घर छोड़ना?
यादों से भागकर
यादें बन जाना
अपनों से
अजनबी हो जाना
थोड़े पैसे
और
शोहरत के लिए
दूर निकल आना
अपनी
मिट्टी से
जिसमे कैद है
बचपन की सुनहरी यादें;
उन नज़रों से
ओझल होना
कितना मुश्किल
है न
जिन्हें देखे बिना
अधूरी लगती हो
जिंदगी,
उन्हें तन्हा छोड़ कर
आगे बढ़ जाना
कितना
मुश्किल है न
घर छोड़ना?
कितना
जवाब देंहटाएंमुश्किल है न
घर छोड़ना?
------------------------------ सच्ची अभिव्यक्ति
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (30-12-2014) को "रात बीता हुआ सवेरा है" (चर्चा अंक-1843) "रात बीता हुआ सवेरा है" (चर्चा अंक-1843) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अभार सर।
हटाएंसच में घर छोड़ने का दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं