कुछ कहने से डर लगता है
जाने क्या होगा अंजाम मेरा,
मेरी रूह कांपती है अक्सर
कैसे होगा सब काम मेरा ,
मेरी राहें सब से जुदा हैं क्यों?
कुछ करता हूँ कुछ हो जाता है,
जिन राहों से गुजरता हूँ मैं.
कुछ न कुछ खो जाता है ;
भूली बिसरी रातों ने
कुछ ऐसे दर्द दिए हैं मुझे ,
मैं भूलूं तो याद आती हैं ,
मैं अब तक भूल सका न जिन्हें ,
शायद वो पहली गलती थी ;
जब जज्बातों ने दम तोडा था
मैं सीधा सदा बच्चा था,
मेरी राहों में सौ रोड़ा था ,
हर बाधा मैंने पार किया
गिर गिर कर उठाना सीखा ;
सब कुछ अपना मैं वार दिया
, मेरे वार पे जो प्रहार हुआ
उसका कटु अनुभव अब तक है
' जो भौतिकता ने छीना था;
वह अदभुत कलरव अब तक है
जब शून्य हो गयी थी स्मृतियाँ ,
भव शून्य हो गया था जीवन ,
बस अधरों में मैं विस्मृत था
न जड़ ही रहा न रहा चितवन .
संकल्पों का संधान किया
मैंने पहला विषपान किया ;
धर्म- कर्म था था भूल चूका ,
विधि में मैंने व्यवधान किया .
अब भूल रहा शैनः शैनः ,
अपने अर्जित उन पापों को ;
जब मृत्यु मेरी आ जाएगी
तब भूलूंगा संतापों को ..............................
जाने क्या होगा अंजाम मेरा,
मेरी रूह कांपती है अक्सर
कैसे होगा सब काम मेरा ,
मेरी राहें सब से जुदा हैं क्यों?
कुछ करता हूँ कुछ हो जाता है,
जिन राहों से गुजरता हूँ मैं.
कुछ न कुछ खो जाता है ;
भूली बिसरी रातों ने
कुछ ऐसे दर्द दिए हैं मुझे ,
मैं भूलूं तो याद आती हैं ,
मैं अब तक भूल सका न जिन्हें ,
शायद वो पहली गलती थी ;
जब जज्बातों ने दम तोडा था
मैं सीधा सदा बच्चा था,
मेरी राहों में सौ रोड़ा था ,
हर बाधा मैंने पार किया
गिर गिर कर उठाना सीखा ;
सब कुछ अपना मैं वार दिया
, मेरे वार पे जो प्रहार हुआ
उसका कटु अनुभव अब तक है
' जो भौतिकता ने छीना था;
वह अदभुत कलरव अब तक है
जब शून्य हो गयी थी स्मृतियाँ ,
भव शून्य हो गया था जीवन ,
बस अधरों में मैं विस्मृत था
न जड़ ही रहा न रहा चितवन .
संकल्पों का संधान किया
मैंने पहला विषपान किया ;
धर्म- कर्म था था भूल चूका ,
विधि में मैंने व्यवधान किया .
अब भूल रहा शैनः शैनः ,
अपने अर्जित उन पापों को ;
जब मृत्यु मेरी आ जाएगी
तब भूलूंगा संतापों को ..............................
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