क्यों दुःख होता है दुःख में ;
क्यों सुख होता है सुख में;
क्या यही भाग्य अवलोकन है?
क्या यही विधाता का मन है?
क्यों दुःख होता है दुःख में ;
क्यों सुख होता है सुख में;
क्या यही भाग्य अवलोकन है?
क्या यही विधाता का मन है?
मैंने बस दुःख को जाना है ,
इक दुखद स्वप्न इसे माना है
यह वैतरणी की धरा है ,
इसे पार कर के कुछ पाना है.
इस लघु जीवन में कष्ट बहुत हैं ,
पग-पग पर बाधाएँ हैं ,
जो तनिक मार्ग से भटक गए,
मुंह खोले विपदाएं हैं ;
सुख के साधन का पता नहीं ,
दुःख परछाईं जैसे चलता ,
अनुसन्धान करूँ कैसे ?
जब मन में रही न समरसता ;
अब बार- बार क्यों भटक रहा,
क्या मार्ग मिलेगा मुझे कहीं?
या चिर निद्रा में सो जाऊं?
मिट जाएगा संताप वहीँ .....................
क्यों सुख होता है सुख में;
क्या यही भाग्य अवलोकन है?
क्या यही विधाता का मन है?
क्यों दुःख होता है दुःख में ;
क्यों सुख होता है सुख में;
क्या यही भाग्य अवलोकन है?
क्या यही विधाता का मन है?
मैंने बस दुःख को जाना है ,
इक दुखद स्वप्न इसे माना है
यह वैतरणी की धरा है ,
इसे पार कर के कुछ पाना है.
इस लघु जीवन में कष्ट बहुत हैं ,
पग-पग पर बाधाएँ हैं ,
जो तनिक मार्ग से भटक गए,
मुंह खोले विपदाएं हैं ;
सुख के साधन का पता नहीं ,
दुःख परछाईं जैसे चलता ,
अनुसन्धान करूँ कैसे ?
जब मन में रही न समरसता ;
अब बार- बार क्यों भटक रहा,
क्या मार्ग मिलेगा मुझे कहीं?
या चिर निद्रा में सो जाऊं?
मिट जाएगा संताप वहीँ .....................
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