गली के कुत्ते, गली के अंदर, बहुत ही तन कर, खड़े हुए हैं
मैं आना चाहूं, गली के अंदर, पड़ी हैं पीछे, हज़ारों कुतियां
ये भौंकती हैं, वे भौंकते हैं, ये भौंकते हैं, वे भौंकती हैं
मैं भगना चाहूं, जिगर लगा कर, वे काट खाएं कि जैसे हडियां।
संभल के चलना, रही है फ़ितरत, मगर लगे हैं, कई सौ टांके
कई गली में में, मैं गिर के संभला, कई गली में, चुभी थी कटियां
सिहर ही जाता, मैं याद करके, वो दस बजे का, अजब सा मंज़र
वो लंबी जीभें, वो दांत तीखे, वो ख़ौफ़ आलम, सियाह रतियां।।
(आज कुत्ता संघ के द्वारा दौड़ाए जाने के बाद, दिल से यही निकला...क्षमा सहित....आमिर ख़ुसरो…..आलोक श्रीवास्तव.....मेरे साथ वाले लड़के की मरम्मत संघ ने कर दी है, पांच इंजेक्शन उसे लग के रहेगा...मैं सुरक्षित हूं. ये वाला कुत्ता नहीं था...ये अच्छा वाला है...बेरसराय रहता है....IIMC में इसका आना-जाना है)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-01-2018) को "डोर पर लहराती पतंगें" (चर्चा अंक-2849)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी और मकर संक्रान्ति की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधातिवारी (राधेश्याम)