शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

नेह का सागर लाई नानी

अंतरिक्ष को पात्र बनाकर नेह का सागर लाई नानी
जिसमें सारी दुनिया तर हो वैसी ही गहराई नानी,

हमको हर-पल यही लगा की पग पग पर है साथ हमारे
कई दिनों से ढूंढ रहे हैं जाने कहाँ हेराई नानी?

आँखों में जब आँसू आते झट से विह्वल हो जाती थी
अब रो-रो कर बुरा हाल है कैसे हुई पराई नानी?



पल-पल क्षिन-क्षिन उन्हीं कहानी किस्सों की सुधि आती है
सावन की भीनी रातों में जिनको कभी सुनाई नानी,
सच है की नानी की गोदी गंगा से भी शीतल लगती
तभी हमें ये अक्सर लगता सब नदियों की माई नानी,
जब-जब नानी याद आती है आँखों से आँसू झरते हैं,
ऐसे छिपकर गुम होने की कैसी जुगत लगाई नानी?

-अभिषेक शुक्ल 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी रचना में नानी जी के प्रति आपका स्नेह
    अप्रतिम है.. बहुत अच्छा लगा पढ़कर...
    बहुत ही शानदार....

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