बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

ईश का वरदान हो क्या?




सुन रहा हूँ आहटों को
 नींद आंखों से परे है,
सिसकियां दर्शन में उतरीं
 मौन होठों को धरे है,
इस अलग रणक्षेत्र में तुम
 काव्य का आह्वान हो क्या?
साधना की ही नहीं पर
 ईश का वरदान हो क्या??

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

    मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार

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  2. बहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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  3. बहुत सुन्दर रचना है मित्र। आपको तो हाईस्कूल के दिनों से ही हमने समझा है। आपको इस रूप में देखकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। अपने मार्ग में आप विजयी हों।

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