मंगलवार, 3 मई 2016

ध्वस्त धर्मध्वज

तोड़ दिया मैंने खाली पड़े
 खण्डहरों को
ध्वस्त इमारतों को
धर्मध्वजों को
क्योंकि
सब निष्प्रयोज्य थे;
गौरवशाली अतीत देखकर
अहंकार हो रहा था मुझे
किंतु
वर्तमान उन्माद की भेंट
चढ़ जाता था,
सनातन,चिरंतन, अद्वितीय
संस्कृति का स्वांग
धूमिल कर देता था
मेरे जीवन के प्रत्येक क्षण को,
आज! अद्भुत आह्लाद है
ह्रदय में
मिट्टी को मिट्टी में मिलाकर;
लाल,केसरिया,हरा,सफेद
ध्वजों को
रंग दिया मैंने एक रंग में
तोड़ दिया उन सभी स्तम्भों को जिनमें
लहरा रहे थे
परस्पर विद्वेष के कारक,
अब न कोई कोलाहल है
न ही अंर्तद्वन्द्व
एक शाश्वत शांति है
दशो दिशाओं में
दूर कहीं सुनाई पड़ रही है
रणभेरी
दासता पर स्वच्छंदता के
विजयनाद की।।
-अभिषेक

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