भरत ने कही ह्रदय की बात
चलो तुम आज अयोध्या तात,
अभी तो तनिक शेष है रात
तात! तुम स्वयं नवल प्रभात।।
नहीं कुछ कैकयी का दोष
कहाँ नारी को इतना होश
सकुचित हुआ ह्रदय का कोष
परमति प्रकट हुआ था रोष।।
मन्थरा का था मलिन प्रभाव
दे दिया अविनाशी सा घाव
न जाने कैसा था वह ताव
किया जो अधम दिशा को पांव।।
प्रसंग बताइये?
😊😊😊😊😊😊
(पूरा कुछ दिन बाद लिखूंगा)
-अभिषेक