बुधवार, 23 दिसंबर 2015

एक और दामिनी



एक लड़की मैंने देखी है

जो दुनिया से अनदेखी है

दुनिया उससे अनजानी है

मेरी जानी-पहचानी है।

रहती है एक स्टेशन पर

कुछ फटे-पुराने कपड़ों में

कहते हैं सब वो ज़िंदा है

बिखरे-बिखरे से टुकड़ों में।

प्लेटफॉर्म ही घर उसका

वो चार बजे जग जाती है

न कोई संगी-साथी है

जाने किससे बतियाती है।

वो बात हवा से करती है

न जाने क्या-क्या कहती है

हाँ! एक स्टेशन पर देखा

एक पगली लड़की रहती है।

मैंने जब उसको देखा

वो डरी-सहमी सी सोयी थी

आँखें  उसकी थीं बता रहीं

कई रातों से वो रोई थी।

बैडरूम नहीं है कहीं उसका

वो पुल के नीचे सोती है,

ठंढी, गर्मी या बारिश हो

वो इसी ठिकाने होती है।

वो हंसती है वो रोती है

न जाने क्या-क्या करती है

जाने किस पीड़ा में  खोकर

सारी रात सिसकियाँ भरती है।

जाने किस कान्हा की वंशी

उसके कानों में बजती है

जाने किस प्रियतम की झाँकी

उसके आँखों में सजती है।

जाने किस धुन में खोकर

वो नृत्य राधा सी करती है

वो नहीं जानती कृष्ण कौन

पर बनकर मीरा भटकती है।

उसके चेहरे पर भाव मिले

उत्कण्ठा के उत्पीड़न के,

आशा न रही कोई जीने की

मन ही रूठा हो जब मन से।

है नहीं कहानी कुछ उसकी

पुरुषों की सताई नारी है

अमानुषों से भरे विश्व की

लाचारी पर वारी है।

वो पगली शोषण क्या जाने

भला-बुरा किसको माने

व्यभिचार से उसका रिश्ता क्या

जो वो व्यभिचारी को जाने?

वो  मेरे देश की बेटी है

जो सहम-सहम के जीती है

हर दिन उसकी इज्जत लुटती

वो केवल पीड़ा पीती है।

हर गली में हर चौराहे पर

दामिनी दोहरायी जाती है,

बुजुर्ग बाप के कन्धों से

फिर चिता उठायी जाती है।

कुछ लोग सहानुभूति लिए

धरने पर धरना देते हैं,

गली-नुक्कड़-चौराहों पर

बैठ प्रार्थना करते हैं,

पर ये बरसाती मेंढक

कहाँ सोये से रहते हैं

जब कहीं दामिनी मरती है

ये कहाँ खोये से रहते हैं।

खुद के आँखों पर पट्टी है

कानून को अँधा कहते हैं

अपने घड़ियाली आंसू से

जज्बात का धंधा करते हैं।

जाने क्यों बार-बार मुझको

वो पगली याद आती है,

कुछ घूँट आँसुओं के पीकर

जब अपना दिल बहलाती है।

उसकी चीखों का मतलब क्या

ये दुनिया कब कुछ सुनती है

यहाँ कदम-कदम पर खतरा है

यहाँ आग सुलगती रहती है।

हर चीख़ यहाँ बेमतलब है

हर इंसान यहाँ पर पापी है,

हर लड़की पगली लड़की है

पीड़ा की आपाधापी है।




2 टिप्‍पणियां:

  1. पर ये बरसाती मेंढक

    कहाँ सोये से रहते हैं

    जब कहीं दामिनी मरती है

    ये कहाँ खोये से रहते हैं।

    इस कठोर सत्य की अभिव्यक्ति बड़ी सटीक व मर्मस्पशी है, अभिषेक जी।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-12-2015) को ""सांता क्यूं हो उदास आज" (चर्चा अंक-2201) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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