शनिवार, 5 दिसंबर 2015
प्रिये तुम्हारे प्रेम पाश ने.
प्रिये तुम्हारे प्रेम-पाश ने इस हिय का अवकाश किया,
तुमने क्या जादू कर डाला धरती को अकाश किया।।
जब से जीवन में तुम आई जीवन-दर्शन समझ लिया
तुम्हें ही अपना सब कुछ माना तुमको दर्पण समझ लिया।
तुम मुझमे प्रतिविम्बित होती हर-पल ये आभास हुआ
तुम बिन बहुत अधूरा हूँ मैं अब मुझको आभास हुआ
प्रिये तुम्हारे.....
रातों में नींदों को तजकर मैंने तुम पर गीत लिखे
तुमको डच तो जग सोचा सर भूमि में प्रीत लिखे
चलते चलते खो जाता हूँ बैठे-बैठे सो जाता हूँ
कभी तुम्हारी सुधि जो आई हँसते-हँसते रो जाता हूँ
योगी बन मैं दर-दर भटका कान्हा पर विश्वास किया
प्रिये तुम्हारे....
प्रिये तुम्हारे सुन्दर मन ने मेरे मन को मोह लिया
जिस पथ से तुम आती-जाती उसी राह की टोह लिया,
जहाँ-जहाँ मेरे पग जाएँ वहां तुम्हारे चरण चिन्ह हों
तुम मेरी मैं बना तुम्हारा तुम मुझसे न तनिक भिन्न हो
मैं अँधेरे का प्रेमी था तुमने सहज प्रकाश किया
प्रिये तुम्हारे प्रेम पाश ने....
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खुबसूरत
जवाब देंहटाएंआभार!! :)
हटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....