जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा.
मंगलवार, 29 जुलाई 2014
यादें
तुम्हारी आँख लगती है
तो आँखे बंद होती है,
तुम्हारी नींद खुलती है
तो साँसे मंद होती है,
अजब है हाल -ए-दिल मेरा
जुड़ा हूँ जब से मैं तुमसे,
मेरे अपने ही धड़कन से
मेरी ही जंग होती है.
बहुत खूबसूरत नज़्म अभिषेक जी। सचमुच भावो को शब्द दे दिये आपने। बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंशब्दों और भावों का बेजोड़ संगम
जवाब देंहटाएंभावों की खुबसूरत अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंअच्छे दिन आयेंगे !
सावन जगाये अगन !
बहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ... खुद से ही जंग है वो भी उनके लिए ... इसे ही प्रेम कहते हैं ...
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