मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

राजनीतिक पार्टियों की व्यर्थ संवेदना समाज के लिए घातक नहीं बल्कि जहर है

किसी के आप सच्चे हितैषी हैं तो उसके साथ सहानुभूति न रखें. सहानुभूति और संवेदनाएं किसी के राहों का कांटा जरूर बन सकती हैं ग्लूकोज का काम कतई नहीं करने वाली. सहानुभूति की तुलना आप जहर से कर सकते हैं. मीठा जहर. आज कल लोग बहुत संवेदनशील हो गए हैं. सवा सौ करोड़ की आबादी में सारे संवेदनशील जीव किसी खास प्लेटफॉर्म पर आपको मिल जाएंगे.

किसी के लिए दो कदम भी न चलने वाले लोगों में और ज्यादा संवेदना पाई जाती है. औसत से ज्यादा. इनकी प्रवृत्ति इतनी खराब है कि इन्हें पढ़ लें तो आप खुद को अपराधी समझने लगेंगे. हाय! हमने समाज के लिए कुछ नहीं किया.

संवेदना और सहानुभूति किसी को भी निकम्मा बनाने के लिए कैटेलिस्ट का काम करती है. किसी को पंगु करना हो तो बस उसे एहसास दिलाते रहिए कि भाई आपके साथ बहुत गलत हुआ है, बहुत बुरा हुआ है. आपने जितना अत्याचार सहा है कोई और सहता तो मर जाता. देखो आपके साथ कितना भेदभाव लोग करते हैं. आप लड़िए साथी हम पीछे से आपको तक्का देंगे. आपको बहुत मजबूत करेंगे. आप पर लाठी पड़ेगी तो सबसे पहले हम झेलेंगे.

तहकीकात करेंगे तो पता लगेगा वक्त पर यही लोग सबसे पहले भागते हैं. सहानुभूति रखने वाले लोग वक्त पर काम नहीं आते.

समाज का बंटवारा मनु अपने जीवन काल में उतना नहीं कर पाए जितना सोशल मीडिया ने कर दिया है. कोई अगर अपना कल भूलकर आज में जीना भी चाहे तो उसे याद आ जाएगा कि ओह! कल मेरे साथ बहुत कुछ गलत हुआ था. मैं सताया गया हूं. कल को याद कर आज आगे बढ़ने की संभावनाएं खारिज होने लगती हैं.

बांटने वाले लोग दबे पांव अपना काम सलीके से कर रहे हैं. उम्मीद है आगे भी करते रहेंगे. गाना प्यार बांटते चलो पर बना था उसे अपनाया नफरत बांटते चलो के रूप में गया है.

बांटो, जितना हो सके बांट दो समाज को. किसी दिन समाज के दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक, क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण, हिंदू-मुसलमान समझदार जरूर होंगे. तब एक मस्त चिट्ठी लिखेंगे परिवार तोड़ने वाले लोगों के लिए.

उनका संबोधन होगा-
सेवा में,
प्रिय राजनीतिक पार्टियों!
एक बात कहने का मन कर रहा है.
हम आपकी व्यर्थ संवेदनाएं ले क्या करेंगे?
क्या करेंगे?

आपकी निरीह जनता,
जिन्हें आप केवल वोट बैंक समझते हैं.

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