शनिवार, 3 मार्च 2018

पर्दा है पर्दा, पर्दे के पीछे पर्दानशीं है



आवरण!
विरूपता को ढकने का आवरण. 
सहजता का बोध न होने देने का आवरण.
पर्दे के भीतर का कलाकार बाहरी दुनिया की दृष्टि से ओझल रहे, इस हेतु आवरण.
दुनिया को आवरण बहुत पसंद है क्योंकि आवरण, यथार्थ ढकने का साधन  है. भ्रम ही सही, किंतु कुछ क्षणों के लिए आवरण का भ्रम किसी को भी दुविधा में डाल सकता है.
अभिनेता भी यही आवरण ओढ़ते हैं क्योंकि आवरण ज्ञात को अज्ञात करने का साधन है. जब कोई अभिनय करता है तो उसके पूर्ववर्ती स्वरूप का ध्यान किसी को नहीं होता. उसकी सत्ता गौण हो जाती है, पटकथा का पात्र प्रासंगिक हो जाता है. अभिनेता की वृत्ति अभिनय है. अभिनय से परे  उसका व्यक्तित्व  होता है. स्वाभाविक, जैसा है वह, वैसा ही.

जिन्होंने अभिनय का ककहरा नहीं सीखा है वह अभिनेताओं से अच्छा अभिनय करते हैं. व्यक्तिगत जीवन में. क्योंकि दुनिया रंगमंच हो या न हो, दुनिया में अभिनेता बहुत हैं. जिनकी वृत्ति अभिनय है, उनका अभिनय क्षणिक है. जिनके लिए अभिनय वृत्ति नहीं है, उन्हें जीवन भर उसे ढोना पड़ता है. यथार्थ जीवन के अभिनेता  भीतर की प्रवृत्ति को बाहर के आचरण से नियंत्रित कर ले जाते हैं. उनका अभिनय स्वाभाविक लगता है. 

मुंशी प्रेमचंद ने कहा भी है, ''धूर्त व्यक्ति का अपनी भावनाओं पर जो नियंत्रण होता है वह किसी सिद्ध योगी के लिए भी कठिन है." ऐसे सिद्धयोगी दुर्लभ नहीं हमारे-आपके सामने घूम रहे हैं. मैं भी उनमें से एक हो सकता हूं, आप भी.

बुराइयों की  भनक किसी को नहीं लगेगी, अच्छाइयों के प्रचार के लिए पर्चे बांटे जा सकते हैं. बांटे भी जाते हैं क्योंकि जब आचरण का विज्ञापन किया जाता है तो रेट अच्छा लगता है. लाखों में. दूल्हा अच्छा बिकता है. लड़की का बाप अच्छा दामाद खरीदता है. राम जैसा.
अलग बात है, हर राम रावण है पर हर घोषित रावण का चरित्र उतना भी खराब नहीं होता जितना शोर मचाया जाता है. तात्पर्य यही कि पुण्यात्माओं से बड़ा पापी ढूंढने से नहीं मिलता. लड़का भी.

मैंने कुछ स्तरीय पाप किए होंगे जिनके बारे में मेरे अलावा कोई नहीं जानता. कोई मेरे बारे में अगर अफवाह भी उड़ाए तो  किसी को विश्वास नहीं हो सकता. बच्चन जी की एक पंक्ति है  जो मुझ पर फ़िट बैठती है, "पाप हो या पुण्य हो कुछ नहीं, मैंने किया, कभी आधे ह्रदय से." सबके लिए मैं अच्छा बच्चा हूं. गुड ब्वॉय. संस्कारी. मेरा कुसंस्कार शायद मुझ तक सीमित है. किसी को  मेरी कमियों की ख़बर भी नहीं होगी. मुझे भी नहीं. हो भी नहीं सकता. भावुकता में सतर्कता के साथ समझौता टूटने नहीं पाया. टूट भी नहीं सकता. लेकिन इससे मेरे पाप तो कम नहीं होंगे. जो किया है उसे भोगना है. किसी भी रूप में. मेरा पाप यह है कि अभिनय मेरी वृत्ति का हिस्सा नहीं है लेकिन मैंने अभिनय किया है. संस्कारी बने रहने का अभिनय, संस्कार को तिलांजलि देने के बाद भी.


तथाकथित संस्कार. घरवालों के लिए राम, भीतर से रावण. दर्पण मुझे काटने दौड़ सकता है अगर कभी सामने पड़ गया तो. कब तक भागूंगा ख़ुद से. सामना तो होगा न कभी न कभी मेरा मुझसे.

प्यार! शरीर! आलिंगन! संबंध! विलगन! निष्कर्ष, चरित्र हनन.
मैं चरित्रवान, मेरे साथ किसी कार्य में जिसकी बराबर की संलिप्तता वह चरित्रहीन.
मैं पुरुष, वह स्त्री.
समाज के लिए मैं राम, वह सुपर्णखा.
मैं अपने घर की मर्यादा का  रक्षक, वह कुलटा.
मैं उत्तम चरित्र का पुरुष, वह वैश्या.
ऐसा क्यों?
मुझे पर मेरे घर को गर्व, मैं कुलदीपक!!
वह कलंकिनी.
महिलाएं कुलटा हैं. पुरुष चरित्रवान हैं.
यह आदिम संविधान द्वारा रची गई माया है. कई युग बीतेंगे इससे पार पाने में. सच यही है.


मेरी तरह लाखों संस्कारी बच्चे घूम रहे हैं. पवित्र. शाश्वत. पावक की तरह. सूर्य से भी अधिक ओजस्वी. दीपमान. संस्कारी तो राम से भी अधिक.
बच के रहिएगा. राम, रावण से ज़्यादा बुरे हैं. कलियुग वाले.
कुकर्म कोई बचा नहीं है. सत्कर्म का आवरण है. पीढ़ियां बीत जाएंगी उस आवरण का अनावरण करने में क्योंकि बहुसंख्यक समाज की अवधारणा अल्पसंख्यक समाज की नियति बन जाती है. न जाने क्यों. बनी-बनाई अवधारणाएं टूटती नही हैं. तोड़ भी नहीं सकते हैं.
मैं भी ग़लत हूं. आप भी ग़लत हैं. सामाज भी ग़लत है. सच पच नहीं पाता. आमाशय समाज का दुर्बल है.
आवरण की आदत लग गई है. लोग वल्कल वस्त्र पहन कर व्यभिचार करते हैं. मैं भी. बहुत प्यारा बच्चा हूं, सबकी नज़रों में. दुआ कीजिए मेरे आवरण का अनावरण न होने पाए.

-अभिषेक शुक्ल


(फोटो स्रोत: Heraldsun)

2 टिप्‍पणियां:

  1. सही, करारा व्यंग्य है संस्कृति का नकाब ओढ़कर अपसंस्कृति फैलाने वालों पर !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-03-2017) को "5 मार्च-मेरे पौत्र का जन्मदिवस" (चर्चा अंक-2901) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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