शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

प्रेम इक अनसुलझी गुत्थी है

शब्दों ने अपने अर्थ
 खो दिए हैं
अब न तुम
अपने मन की कह पाती हो
न मैं
तुम्हारी भावनाएं समझ पाता हूं
क्योंकि
 दुनिया के किसी व्याकरण में
इतना सामर्थ्य नहीं
कि
सुलझा दे
हमारे नासमझी के द्वंद्व को.
अब न तुम कहो
न मुझे कुछ कहने दो
हमारे बीच
जो है
 उसे भ्रम कहते हैं
न तुम मुझे समझो
न मैं तुम्हें समझूं
शब्द, शब्द नहीं
भ्रम हैं.

#अधिकतम_मैं

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-10-2017) को
    "सुनामी मतलब सुंदर नाम वाली" (चर्चा अंक 2772)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज के युवाओं से पर्यावरण हित में एक अनुरोध “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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