जीत के उन्माद में क्यों, हार से भय खा रहे हैं
सत्य से इतनी वितृष्णा, गान मिथ्या गा रहे हैं,
किस विधाता ने रचा है, भ्रम की ऐसी गति अकिंचन
झूठ के रथ पर धरे पग, सत्य पथ को जा रहे हैं।
युक्ति कोई आज कह दो, मुक्ति से दो हाथ कर लूं
प्राण जो अटके युगों से, आज उनसे होंठ तर लूं,
सृष्टि के हर यम नियम से, बैर अपना है सनातन
तुम कहो जीवन सुधा दूं तुम कहो तो प्राण हर लूं।।
- अभिषेक शुक्ल
सत्य से इतनी वितृष्णा, गान मिथ्या गा रहे हैं,
किस विधाता ने रचा है, भ्रम की ऐसी गति अकिंचन
झूठ के रथ पर धरे पग, सत्य पथ को जा रहे हैं।
युक्ति कोई आज कह दो, मुक्ति से दो हाथ कर लूं
प्राण जो अटके युगों से, आज उनसे होंठ तर लूं,
सृष्टि के हर यम नियम से, बैर अपना है सनातन
तुम कहो जीवन सुधा दूं तुम कहो तो प्राण हर लूं।।
- अभिषेक शुक्ल
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