21 सिंतबर को शाम क़रीब 6 बजे के आसपास भारत कला भवन के सामने एक लड़की के साथ कुछ मनचले छेड़छाड़ करते हैं। लड़के बदतमीज़ी की सारी हदें पार कर जाते हैं। लड़की के कपड़ों के अंदर हाथ डालते हैं। लड़की चिल्लाती है। सुरक्षा गार्ड पास में होते हैं पर लड़की की चीख़ सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। थोड़ी ही दूर पर प्राक्टोरियल बोर्ड के कुछ सदस्य भी बैठे होते हैं। लड़की को चिल्लाते देखते हैं फिर भी सामने नहीं आते हैं।
ये सब तब हुआ जब रात का सन्नाटा भी नहीं पसरा था। लोगों की आवाजाही भी चालू थी। हमेशा की तरह नामर्द भीड़ क्यों कुछ बोले। कोई भीड़ की बहन थोड़े ही चिल्ला रही थी।
जहां की यह घटना है वहां से वीसी का चैंबर ज़्यादा दूर नहीं है। लड़की जब प्राक्टोरियल बोर्ड के पास शिकायत लेकर गई तो वहां किसी ने उसकी शिकायत नहीं सुनी। वार्डन से आपबीती बताने पर उसे ही इस घटना के लिए ज़िम्मेदार ठहरा दिया गया। वार्डन का कहना था कि रात में क्यों तुम टहल रही थी।
मतलब कैंपस में लड़कियों को सुरक्षित रहने के लिए क़ैदखाने में रहना होगा क्योंकि प्रशासन उनकी सुरक्षा कर पाने में नाकाम है। उन्हें अगर सुरक्षित रहना है तो हॉस्टल नुमा जेल में दिन ढलते ही घुस जाना होगा, क्योंकि बाहर मनचलों पर लगाम लगा पाने में वीसी की सेना असमर्थ है।
मेन गेट के पास तीन दिन से लड़कियां विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। कुलपति आवास की घेराई के लिए जब स्टूडेंट आगे बढ़े तो सुरक्षा कर्मियों ने उन पर जम कर लाठियां बरसाईं। घटना शनिवार क़रीब 10 बजे रात की है।
कुछ अराजक तत्वों ने आगजनी व पथराव शुरू किया तो वीसी ने पूरे कैंपस को पुलिस छावनी में बदल दिया। ये हिंसक प्रदर्शन लड़कियों ने नहीं किया था। लेकिन सज़ा उन्हें भी मिली।
अंधाधुंध हवाई फ़ायरिंग देखकर आसमान से बीएचयू को खड़ा करने वाले लोग भी शर्म से गड़ गए होंगे। बीएचयू में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात है। सुनने में आ रहा है कि 20 थानों की फोर्स, 5 कंपनी पीएसी, हथियारों के साथ कैंपस में बुलाई गई है। कैंपस में धारा 144 लग गई है।
जहां पढ़ाई होनी थी वहां कुटाई हो रही है। लड़कियां इकट्ठी होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही थीं तो उन पर लाठी चार्ज कर दिया गया।
जिन्हें डराना था उन्हें नहीं डराया जा रहा है। जो शोषित हैं ये सारा प्रदर्शन उनके लिए है। कुछ बोलोगे तो कूटे जाओगे। हम लोकतंत्र में नहीं लोकतंत्र के वहम में जीते हैं। हर सरकार विरोध दबाने के लिए पुलिस की मदद लेती है। ऐसे कई अवसर आए हैं जब पुलिस ने साबित किया है कि वह आतंकियों से कम अराजक नहीं है।
16 दिसंबर 2012, निर्भाया कांड के विरोध में जब इडिया गेट पर 21 दिसंबर को लोग साथ आए थे तो उन पर आंसू गैस के गोले बरसाए गए थे। सैकड़ों लोग घायल हुए थे। पुलिस की अंधाधुंध लठबाज़ी किसी को नहीं पहचानती। तब कांग्रेस थी अब बीजेपी है। एक सेक्युलर थी दूसरी कट्टर है। पर अंतर कुछ भी नहीं है। सिर्फ़ सरकार चलाने वाले चेहरे बदल गए हैं तरीक़ा सबके पास वही है। जो सुने न उसे ठोक दो।
एक बात तो साफ़ है कि लड़कियां रात में निकलें और उनके साथ कुछ अनहोनी हो तो ज़िम्मेदारी उनकी ही होती है। इस धारणा को लोगों ने घोंट के पी लिया है। इससे पहले भी त्रिवेणी हॉस्टल के पास लड़कियों से छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आईं हैं। शिकायतों को प्रशासन एक कान से सुनता है दूसरे से निकाल देता है। बीएचयू कैंपस में अब गुंडे सरेआम घूमते हैं। जैसे वीसी ने इन्हें अभयदान दे दिया हो, तुम जी भर आतंक मचाओ हम तुम पर आंच तक नहीं आने देंगे।
रात में हुए एक राउंड लाठी चार्ज के बाद एसएसपी अमित कुमार दौरे पर आए। उनसे लोगों ने पूछा कि लाठी चार्ज किसके आदेश पर हुआ तो वे ज़िम्मेदारी लेने की जगह मुकर गए। उन्होंने कहा कि ऐसी किसी घटना के विषय में उन्हें कोई सूचना नहीं है। हम तो ख़ुद लाठी चार्ज के विषय में जानकारी लेने आए हैं। कैंपस में उनकी एंट्री रोकने की भरपूर कोशिश छात्राओं ने की लेकिन उनका क़ाफ़िला रुका नहीं।
एएसपी अमित कुमार के लौटते ही एक बार फिर बेरहमी से लाठी चार्ज किया गया। महिला महाविद्यालय का गेट बाहर से बंद कर दिया गया था जिसकी वजह से एक लड़की बाहर रह गई थी, उसे चार-चार लोगों ने बुरी तरह से मारा। रात में ही एक लड़की की तबियत ख़राब हो गई तो लड़कियों ने गेट तोड़कर किसी तरह उसे हॉस्पिटल पहुंचाया।
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प्रधानमंत्री भी वहीं के दौरे पर थे। उन्हें इस घटना के बारे में जैसे कुछ पता ही न हो। ट्विटर, फ़ेसबुक पे तो तस्वीरें भी आ गईं हैं उनके पूजन-हवन की। छात्राओं की उम्मीदें भी भष्म हो रही हैं शायद प्रधान मंत्री जी न देख पा रहे हों। ‘पिंजड़े में रहो सुरक्षित रहोगी’ अच्छी टैगलाइन बनेगी। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ से अच्छा नारा तो यही है। इतनी कंट्रोवर्सी करा कर वीसी ने ख़ुद का नंबर तो सत्ता की नज़रों में बढ़ा ही लिया होगा।
( यह मेरी ग्राउंड रिपोर्टिंग नहीं है, यह रिपोर्ट वहां पढ़ने वाली महिला महाविद्यालय की एक छात्रा के साथ मेरी बात चीत पर आधारित है)
साभार: लोकल डिब्बा