वक़्त हाथों से इस तरह सरकता है कभी महसूस नहीं किया था लेकिन आज वक़्त को सरकते देखा।
जिस दिन मामा एडमिशन कराने आए थे उसी दिन उन्होंने कहा था, ‘जाओ मौज करो।’ नौ महीने के बाद यहाँ से कुछ लेकर जाओगे।
यहां मैंने केवल मौज ही किया है। पढ़ाई के प्रेशर जैसा कुछ फ़ील ही नहीं हुआ। क्लास असाइनमेंट भी मेरे लिए एंटरटेनमेंट का हिस्सा था। लिखना हमेशा से पसंदीदा काम था तो कभी लगा ही नहीं कि असाइनमेंट कर रहे हैं।
ओरिएंटेशन डे(1 अगस्त) से शुरू हुआ हमारा सफर सिग्नेचर डे (27 अप्रैल ) तक कब पहुंचा पता ही नहीं चला।
मैं कानून का विद्यार्थी था एडमिशन से पहले मुझे यही डर लगता था कि कहीं नई वाली पढ़ाई में मन रमा नहीं तो सब चौपटाचार हो जाएगा।
लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। ओरिएंटेशन डे से ही संस्थान ने मन मोह लिया।
जोशी सर की भाषा वाली क्लास में ग़ज़ब का माहौल रहता। लोक-परलोक सब ओर हम पहुंच जाते थे।
भाषा, लिपि, व्याकरण, अभिधा, लक्षणा और व्यंजना की विशद व्याख्या कई बार सर के पार जाती थी। क्लास में डांट पर भी खूब ठहाके लगते थे। पढ़ाई के सापेक्ष मस्ती कहीं और इस लेवल की नहीं होती है।
रेडियो की क्लासेज लेते थे राजेन्द्र चुघ सर। बेहतरीन क्लास होती थी। सर के हर बात पर तालियां बजतीं थीं। सर जब कहते थे 'सॅारी! यू आर नॅाट फिर फॅार रेडियो' तो हम सब मस्त हो जाते थे। हम भी सेम डायलॅाग मारते थे जब कोई कुछ गड़बड़ करता था।
आनंद प्रधान सर की क्लास हमेशा याद आएगी। फीचर लिखना सिखाते थे सर, लेकिन पढ़ने से अच्छा उन्हें सुनना अच्छा लगता था। बेहतरीन वक्ता हैं सर।
प्रायोगिक पत्र वाले दिन पसीने छूट जाते थे। जल्दी-जल्दी सबमिट करने की होड़ लगी रहती थी। टाइम बचा कर मस्ती जो करनी थी।
परीक्षाओं में भी हमने खूब मस्ती की है। कोई बहुत सीरियस नहीं था एग्ज़ाम को लेकर। क्लास में पढ़ाई इतनी अच्छी होती थी कि कुछ और पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी एग़्जाम के लिए।
कृष्ण सर के संपादन वाली क्लास में सबसे ज्यादा हंगामा होता था। सर कहते ये अब तक का सबसे लापरवाह बैच है। तुम लोग बिलकुल भी सीरियस नहीं हो। जाते-जाते हमें पता चला कि हर बैच में सर का सेम डायलॅाग होता है। विदाई के वक्त सर भावुक हो गए।
सारे दोस्त अलग-अलग जा रहे हैं।अब बहुत मुश्किल है रोज-रोज मिलना। सबका प्लेसमेंट अलग-अलग मीडिया संस्थानों में हुआ है। कुछ दोस्तों का प्लेसमेंट बाकी है, कुछ दिनों में सबका प्लेसमेंट हो जाएगा।
दिन भर पढ़ते थे पर पढ़ाई वाली फील कभी नहीं आई। हर जगह एंटरटेनमेंट चाहे क्लास रूम हो या लाइब्रेरी। हर जगह मस्ती। अब मस्ती पर फुल स्टाप लग गया है।
लोग कहते हैं आईआईएमसी की पढ़ाई पेड हॅालीडे है, नौ महीने कब बीतते हैं पता ही नहीं चलता। हमें भी नहीं पता चला।
कल से कुछ दोस्त दफ्तर वाले हो जाएंगे। मेरा भी कल दफ्तर में पहला दिन होगा।
आईआईएमसी में बीते दिन हमेशा याद आएंगे। हम कहीं भी क्यों न चले जाएं पर संस्थान से मोह नहीं छूट पाएगा। दोस्त बहुत याद आएंगे...क्लासेज बहुत याद आएंगी..महीपाल जी का कैंटीन, चावला सर का गर्मजोशी से हाथ मिलाना, कविता मैम का असाईंमेंट के लिए टोकना....खुशबू का क्लास में चिल्लाना, विवेक का प्रॅाक्सी लगाना..
सच में ये दिन मेरे जिन्दगी के बहुत खूबसूरत दिन रहे हैं।
आईआईएमसी, तुमको न भूल पाएंगे...
उज्जवल भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएं