मैं किसान हूं।
पेशाब पीना मेरे लिए खराब बात नहीं है। जहर पीने से बेहतर है पेशाब पीना। जहर पी
लिया तो मेरे साथ मेरा पूरा परिवार मरेगा पर पेशाब पीने से केवल आपकी संवेदनाएं
मरेंगी। मेरा परिवार शायद बच जाए।
कई बार लगता है
आपकी संवेदनाएं मेरे लिए बहुत पहले ही मर गईं थीं लेकिन कई बार मुझे यह मेरा वहम
भी लगता है। उत्तर प्रदेश के किसानों को बिना मांगे बहुत कुछ मिल गया लेकिन हम
अपनी एक मांग के लिए अनशन किये, भूखे रहे,
कपड़े उतारे और पेशाब तक गटक लिए लेकिन आप तक
कोई खबर नहीं पहुंची।
यह भेद-भाव क्यों?
क्या मेरी भाषा आपके समझ में नहीं आती या मैं
आपके 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का हिस्सा नहीं हूं?
मैं तो
कश्मीरियों की तरह पत्थरबाज भी नहीं हूं, नक्सलियों की तरह हिंसक भी नहीं हूं। मैं तो गांधी की तरह सत्याग्रही हूं ।
मेरी पुकार आप तक क्यों नहीं पहुंचती?
आप भारत के
सम्राट हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक आपके साम्राज्य का विस्तार है।आपकी इजाजत के
बिना भारत में पत्ता तक नहीं हिलता तो क्या आपने, अपने कानों और आंखों पर भी ऐसा दुर्जेय नियंत्रण कर लिया है?
मेरी चीखें आपके
कानों के पर्दों तक क्यों नहीं पहुंचती? मैं चीखते-चीखते मर जाऊंगा और आपके सिपाही मेरी लाशों को कुचलते हुए आगे बढ़
जाएंगे लेकिन आप तक मेरे मरने की खबरें नहीं पहुंचेंगी।
आप तो वस्तविक
दुनिया के सापेक्ष चलने वाली आभासी दुनिया के भी सम्राट हैं। पूरी आभासी दुनिया
आपके और आपके प्रशंसकों से भरी पड़ी है। ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, ऑनलाइन वेब पोर्टल हर जगह तो आप ही आप छाए हुए
हैं। क्या मेरी अर्ध नग्न तस्वीरें आपको नहीं मिलतीं? मेरे दर्द से आप सच में अनजान हैं?
शायद कभी गलती से
आप ख़बरें भी देखते होंगे, अख़बार भी पढ़ते
होंगे, क्या कहीं भी आप मेरी
व्यथा नहीं पढ़ते?
हर साल मैं मरता
हूं। जय जवान और जय किसान का नारा मुझे चुभता है। जवान कुछ कह दे तो उसका कोर्ट
मार्शल हो जाता है और किसान कुछ कहने लायक नहीं रहा है। क्या हमारी बेबसी पर आपको
तरस नहीं आती?
मैं हार गया हूं
कर्ज से। मुझसे कर्ज नहीं भरा जाएगा। न बारिश होती है, न अनाज होता है। पेट भरना मेरे लिए मुश्किल है कर्ज कहां से
भरूं?
सूदखोरों,
व्यापारियों, दबंगों से जहां तक संभव हो पाता है मैं कर्ज लेता हूं,
इस उम्मीद में कि इस बार फसल अच्छी होगी। न
जाने क्यों प्रकृति मुझे हर बार ठेंगा दिखा देती है।
मैं किसान हूं हर
बात के लिए दूसरों पर निर्भर हूं। बारिश न हो तो बर्बादी, ज्यादा हो जाए तो बर्बादी। कभी-कभी लगता है कि मेरी समूची
जाति खतरे में है। सब किसान मेरी ही तरह मर रहे हैं पर सरकारों के कान पर जूं तक
नहीं रेंग रही है।
कभी मुझे
आत्महंता बनना पड़ता है तो कभी मुझे राज्य द्वारा स्थापित तंत्र मार देता है। राज्य
मेरी मौत का अक्षम्य अपराधी है लेकिन दोष मुक्त है। शास्त्र भी कहते हैं राज्य सभी
दंडों से मुक्त होता है। कुछ जगह लिखा भी गया है कि धर्म राज्य को दंडित कर सकता
है लेकिन अब तो धर्म भी अधर्मी हो गया है। वह क्या किसी को दंड देगा।
ऐसी परिस्थिति
में मेरी मौत थमने वाली नहीं है।
आत्महत्या न करूं
तो अपने परिवारों को अपनी आँखों के सामने भूख से मरते देखूं। यह देखने का साहस
नहीं है मुझमें।
मैं भी इसी
राष्ट्र का नागरिक हूं। भारत निर्माण में मेरा भी उतना ही हाथ है जितना भगोड़े
माल्या जैसे कर्जखोर लोगों का। वो आपको उल्लू बना कर भाग जाते हैं। आप उन्हें
पकड़ने का नाटक भी करते हैं। दुनिया भर की ट्रिटीज का हवाला देते हैं पर उन्हें
पकड़ नहीं पाते हैं। वे हजारों करोड़ों का कर्ज लेकर विदेश भाग जाते हैं। विदेश
में गुलछर्रे उड़ाते हैं लेकिन मैं कर्ज नहीं चुका पाता तो मेरी नीलामी हो जाती है।
घर, जमीन, जायदाद सब छीन लिया जाता है। मैं बिना मारे मर
जाता हूं।
आप गाय को तो
कटने से बचाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं लेकिन जब मुझे बचाने की बात
आती है तब आपके दरवाजे बंद क्यों हो जाते हैं?
जितनी पवित्रता
गाय में है उतनी मुझमें भी है। गाय को तो आप बचाने के लिए समिति पर समिति बनाये जा
रहे हैं लेकिन मेरे लिए कुछ करने से आप घबराते क्यों हैं? मैं ही सच्चा गौरक्षक हूं। अगर मेरे पास कुछ खाने को रहेगा
तभी न मैं गायों की रक्षा कर पाऊंगा। आप मुझे बचा लीजिए मैं गाय बचा लूंगा। मां की
तरह ख्याल रखूँगा।
बस मेरा कर्ज माफ
कर दीजिए। मुझे जी लेने दीजिए। असमय मर जाना, आत्महत्या कर लेना मेरी मजबूरी है शौक नहीं। मैं भी जीना
चाहता हूं। आपके सपनों के भारत का हिस्सा बनना चाहता हूँ। आपके मिट्टी की सेवा
करना चाहता हूं। मैं भी राष्ट्रवादी हूं। भारत को गौ धन, अन्न धन से संपन्न करना चाहता हूं लेकिन ये सब तभी संभव हो
सकता है जब मैं जिन्दा रहूंगा।
क्या आप मुझे
मरने से रोक लेंगे?
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को
जवाब देंहटाएं"जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरा मानना ही ये बहुत ही गलत है ... ऐसा होने से पहले तंत्र के हर धागे को जागना जरूरी था ... पर फिर भी ये कहूँगा इस अंत तक जाने की शुरुआत हर नेता किसी न किसी को भड़का के करवा लेगा ... तो क्या ये उचित है ... समाज देश कहाँ जा रहा है ये सोचने की बात है ... आज सबसे ज्यादा निरंकुश वही नेता हैं जिनके पास कोई काम नहीं है सिवाए अलगाववाद और भड़काने के .... फिर चाहे देश का कुछ भी हो ...
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