शुक्रवार, 24 जून 2016

याद आएंगे दोस्त।




कल कालेज का आख़िरी दिन था आज। पांच साल कब बीते कुछ पता ही नहीं चला। मम्मी बिना मैं एक दिन भी नहीं रह पाता था लेकिन मेरठ में पांच साल बिता गए , बिना रोये, कुछ पता ही नहीं चला।
पता भी कैसे चलता मौसी जो पास में थीं। मौसा दीदी, हिमानी सब तो थे..घर की याद भी कैसे आती?
वीरू भइया और मैं ....पांच साल पहले घर से निकले थे जिस मकसद के लिए वो पूरा हो गया।
 भइया दुनिया के सबसे नेक इंसानों में से एक है। बहुत कुछ सीखा है भइया से। हां! मैं इस जन्म में मैं उनसे उऋण नहीं हो सकता।
कुछ बेहद प्यारे दोस्त मिले...
अंजली ,निखिल, निष्ठा,प्रियंका,विशाखा ,पूजा, सौरभ,सोनू  और एक अजूबा दोस्त...सुधांशु....इतने साल बीत गए साथ रहते हुए इसे भइया और मैं दोनों नहीं समझ पाये...किसी अलग ही ग्रह से आया है।
कुछ दोस्त और भी थे...जिन्होंने बीच में ही पढ़ाई ब्रेक कर दी, पर सबकी याद बहुत आएगी।
अंजली- will miss u 
निखिल - भाई! माना तेरी शक्ल एक ख़ास टाइप के  जीव से मिलती है लेकिन हरकतें भी वैसी ही  करना ठीक नहीं है।(हर चीज़ सूंघा मत कर यार)
निष्ठा- चशमिश wish u all d best.
प्रियंका- तेरे पास तो हर सवाल का जवाब होता है..कुछ भी बक देती है, जज बनने के बाद उल्टे-सीधे जजमेंट मत देना..किसी के life की लग जाएगी।
विशाखा- तुम तो बुद्धिमान हो...आज examiner मैम ने भी कह दिया।
पूजा- कुछ दिन और रुक जाती यार, तूने तो पहले ही बाय कर दिया।
सौरभ- गबरु जवान, मिलते रहना।
सोनू- भाई! शादी में बुलाना मत भूलना।
सुधांशु - तू तो हिंग्लिश आदमी है।।
Thank you दोस्तों...तुम सबका साथ बहुत प्यारा था....contact में रहना, और हां! मिलते रहना यार.....तुम सबकी बहुत याद आएगी।
याद आने से पहले याद कर लेना।
Love u all











2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2016) को "इलज़ाम के पत्थर" (चर्चा अंक-2384) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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