बरस रहा है यूँ प्यार तेरा कि जैसे आँखों में उमड़ा बादल
तरस रही हैं मेरी निगाहें तेरी ही ख़ातिर हुआ मैं पागल,
दीवाना तेरा हुआ हूँ जब से नहीं लगे मन किसी जगह पे
जो दिन ढले तो तू याद आये जो शाम हो तो तेरी वो पायल
कि जिसकी छन-छन में डूबा तन-मन
कि जिसकी आहट से नींद टूटे,
कहां है गुम-सुम वो प्यार तेरा किया था जिसने जिया को कायल
बहकते क़दमों ज़रा तो ठहरो हुआ है ख़्वाबों से इश्क़ मुझको,
न पीछे पड़ना, न संग चलना, न राह तकना न होना घायल।।
-अभिषेक शुक्ल
तरस रही हैं मेरी निगाहें तेरी ही ख़ातिर हुआ मैं पागल,
दीवाना तेरा हुआ हूँ जब से नहीं लगे मन किसी जगह पे
जो दिन ढले तो तू याद आये जो शाम हो तो तेरी वो पायल
कि जिसकी छन-छन में डूबा तन-मन
कि जिसकी आहट से नींद टूटे,
कहां है गुम-सुम वो प्यार तेरा किया था जिसने जिया को कायल
बहकते क़दमों ज़रा तो ठहरो हुआ है ख़्वाबों से इश्क़ मुझको,
न पीछे पड़ना, न संग चलना, न राह तकना न होना घायल।।
-अभिषेक शुक्ल
खूबसूरत प्रस्तुति । बहुत खूब शुक्ला जी।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-03-2016) को "दुखी तू भी दुखी मैं भी" (चर्चा अंक - 2286) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
KHUBSURAT ABHIVYKTI KOMAL EHSASO KI :)
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