साँसों में बसी हो तुम इसका इकरार
क्या करना?
मोहब्बत हो गयी तुमसे तो अब इनकार क्या
करना?
जमाना कह रहा मुझको दिवाना क्या
तुम्हे मालुम?
दीवानेपन की हालत में भला इज़हार
क्या करना?
क्या करना?
मोहब्बत हो गयी तुमसे तो अब इनकार क्या
करना?
जमाना कह रहा मुझको दिवाना क्या
तुम्हे मालुम?
दीवानेपन की हालत में भला इज़हार
क्या करना?
''पागलपन'' बहुत ही शानदार रचना। बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर शुक्ला जी।
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर शुक्ला जी।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2015) को "नासमझी के कारण ही किस्मत जाती फूट" (चर्चा अंक-1957) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
उम्दा लिखा है शुक्ला जी |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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