बालश्रम; समाज का कोढ़ जिसे मिटाने की जगह अभिजात वर्ग खाद-पानी डालने का काम करता है।बच्चे हमेशा सस्ते होते हैं बशर्ते अपने न हों। वैसा भी सुना है बड़े लोग अपने बच्चों से कोई काम नहीं कराते क्योंकि उनके बच्चे फूल से नाजुक होते हैं और गरीबों के बच्चे पैदायशी चट्टान जिनका काम ही पहाड़ तोडना होता है। हाँ बच्चे चट्टान नहीं होते हैं पर गरीबी बना देती है।
बड़े लोग अपने बच्चों को धूल-मिटटी से बचाते हैं जिससे इन्हें इन्फेक्शन न हो, धुप से बचाते हैं कहीं रंग न काला हो जाए। हाँ भाई रंग का भी बड़ा खेल है ज़माने में, बच्चा तो गरीब का भी गोरा होता है पर कब अपने नसीब की तरह काला हो जाता है पता ही नहीं लगता।
अमीर माँ-बाप का बच्चा कोई काम नहीं करता है क्योंकि अगर वो काम करेगा तो लाड-प्यार में कमी रह जायेगी। ये सारे ढोंग और तमाशे उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों के हैं या अभिजात वर्ग के जिनके घरों को अक्सर "बड़ा घर" कहा जाता है।
यूँ तो यही लोग ढोंग पीट-पीट कर कहते हैं कि बालश्रम अपराध है इसे रोकें पर खुद इनके घरों में काम करने वाले बच्चों की उम्र सात से चौदह वर्ष तक से कम की होती है। शहरों में मज़दूरी भले ही मंहगी हो पर बचपन तो सस्ता है। काम बड़ों से ज्यादा लिया जाता है लेकिन मज़दूरी मिलती है कौड़ी भर।
बच्चों को child labour (protection and regulation) act 1986 ने जो राहत दी है, जो बालश्रम को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बना है उसे देखकर तो गश आता है। परस्पर विरोधाभास है क्या कहा जाए?
एक तरफ कहा कहा गया है कि बालश्रम अपराध है दूसरी तरफ उनके काम करने का समय और छुट्टियों का प्रावधान नियत किया गया है। यह कैसा गड़बड़-झाला है जो समझ में नहीं आता।
कुछ परिस्थियों को आधार ठहरा कर बालश्रम को वैध किया गया है।
बच्चे घरेलू काम कर सकते हैं, सच तो ये है कि अमीरों के घरों में गरीब बाल मज़दूरों का सबसे ज्यादा शोषण होता है। शोषण का कोई दायरा तय नहीं है यह किसी भी प्रकार का हो सकता है। आर्थिक,शारीरिक या यौन शोषण..बच्चे हैं किसी से कहेंगे थोड़े ही। कुछ चॉकलेट, टॉफी और कपडे काफी हैं उन्हें मानाने के लिए। किसी से कहें भी तो कौन सुनेगा इनकी? बच्चों की अवाज़ बड़ों तक पहुँचती कब है?
बड़े लोग अपने बच्चों को धूल-मिटटी से बचाते हैं जिससे इन्हें इन्फेक्शन न हो, धुप से बचाते हैं कहीं रंग न काला हो जाए। हाँ भाई रंग का भी बड़ा खेल है ज़माने में, बच्चा तो गरीब का भी गोरा होता है पर कब अपने नसीब की तरह काला हो जाता है पता ही नहीं लगता।
अमीर माँ-बाप का बच्चा कोई काम नहीं करता है क्योंकि अगर वो काम करेगा तो लाड-प्यार में कमी रह जायेगी। ये सारे ढोंग और तमाशे उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों के हैं या अभिजात वर्ग के जिनके घरों को अक्सर "बड़ा घर" कहा जाता है।
यूँ तो यही लोग ढोंग पीट-पीट कर कहते हैं कि बालश्रम अपराध है इसे रोकें पर खुद इनके घरों में काम करने वाले बच्चों की उम्र सात से चौदह वर्ष तक से कम की होती है। शहरों में मज़दूरी भले ही मंहगी हो पर बचपन तो सस्ता है। काम बड़ों से ज्यादा लिया जाता है लेकिन मज़दूरी मिलती है कौड़ी भर।
बच्चों को child labour (protection and regulation) act 1986 ने जो राहत दी है, जो बालश्रम को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बना है उसे देखकर तो गश आता है। परस्पर विरोधाभास है क्या कहा जाए?
एक तरफ कहा कहा गया है कि बालश्रम अपराध है दूसरी तरफ उनके काम करने का समय और छुट्टियों का प्रावधान नियत किया गया है। यह कैसा गड़बड़-झाला है जो समझ में नहीं आता।
कुछ परिस्थियों को आधार ठहरा कर बालश्रम को वैध किया गया है।
बच्चे घरेलू काम कर सकते हैं, सच तो ये है कि अमीरों के घरों में गरीब बाल मज़दूरों का सबसे ज्यादा शोषण होता है। शोषण का कोई दायरा तय नहीं है यह किसी भी प्रकार का हो सकता है। आर्थिक,शारीरिक या यौन शोषण..बच्चे हैं किसी से कहेंगे थोड़े ही। कुछ चॉकलेट, टॉफी और कपडे काफी हैं उन्हें मानाने के लिए। किसी से कहें भी तो कौन सुनेगा इनकी? बच्चों की अवाज़ बड़ों तक पहुँचती कब है?
nice post Abhi :)
जवाब देंहटाएंSteek Vichar....
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट...बाल श्रम सामाजिक अभिशाप है, इसका खात्मा बेहद जरूरी है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंविचार करने योग्य बात है आपकी ...
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