अर्थवान भी अर्थहीन भी,
बिन बूंदों के बादल जैसा,
आवश्यक भी महत्वहीन भी ,
जडवत हूँ चेतन भी हूँ,
किन्तु चेतना सीमित है ,
जा सकता हूँ नभ पार अभी ,
आशा भी अवलंबित है ,
कई किरण हैं उस प्रकाश के ,
जो जीवन का है गंतव्य ,
किन्तु कही बाधा अटकी है,
सीमित करती जो वक्तव्य ,
मैं अक्सर डग-मग होता हूँ,
नभ के उत्तेजित पवनों से,
थक हार बैठता हूँ प्रायः,
थल के दुखदाई वचनों से
ये जग मेरे अनकूल नहीं ,
मुझको अनुकूलन लाना है,
सींचित यदि सत्य रहा मुझमें,
तो जग को स्वर्ग बनाना है...
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