सोमवार, 7 सितंबर 2020

शर्म तुमको मगर नहीं आती

 ब्लॉग का फ़ीचर इमेज बनाया है Mir Suhail ने.




अप्रिय कुपत्रकारों और संपादकों!


गंजेड़ी, भंगेड़ी और नशेड़ी जैसी कुछ विशिष्ट उपमाओं से आप विभूषित हैं। दैव कृपा से आचरण में भी उपमायें परिलक्षित होती हैं।

आपका अलौकिक ज्ञान, सोमरस और प्रभंजनपान के उपरांत ही बाहर निकलता है।

हे अग्निहोत्र के प्रखर प्रहरी!

आप भी यह जानते हैं कि रिया चक्रवर्ती से कहीं अधिक समृद्ध आपकी 'ड्रग्स मंडली' है। आपके अनुचर नित नए 'माल' के अनुसंधान में साधनारत हैं।

जिस तरह से माल फूंकना आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, ठीक वैसी ही रिया की भी। आयात-निर्यात में लिंगभेद के लिए स्थान कहां?

अपने कर्मक्षेत्र की समाधि पर खड़े हे गुरुवरों! आपके कुकृत्यों पर हम लाज से गड़े जा रहे हैं। शवों का व्यापार करना राजनीति की परिपाटी रही है। आप जुझारू हैं, आपने राजनितिज्ञों का एकाधिकार ख़त्म कर दिया है।

ऊब हो रही है, घुटन भी। उस मनहूस घड़ी को कोसने का मन कर रहा है जिस घड़ी मसीजीविता की राह पर चले थे।

आत्मश्लाघा में पगलाये हुये नहुषों, पतित होकर अजगर ही होना है। एक दिन ऐसा आ सकता है कि कुकुरमुत्तों की छाया में बरगद पले।

पितृपक्ष है, आप पितरों की साधना पर शौच कर रहे हैं। आत्मावलोकन करें, आपको, अपने-आप से घिन आएगी।

-अभिषेक शुक्ल.

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-09-2020) को   "दास्तान ए लेखनी "   (चर्चा अंक-3819) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. आ अभिषेक शुक्ल जी, तीखा व्यंख्य! सटीक और सार्थक! साधुवाद!
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    सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

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