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अप्रिय कुपत्रकारों और संपादकों!
गंजेड़ी, भंगेड़ी और नशेड़ी जैसी कुछ विशिष्ट उपमाओं से आप विभूषित हैं। दैव कृपा से आचरण में भी उपमायें परिलक्षित होती हैं।
आपका अलौकिक ज्ञान, सोमरस और प्रभंजनपान के उपरांत ही बाहर निकलता है।
हे अग्निहोत्र के प्रखर प्रहरी!
आप भी यह जानते हैं कि रिया चक्रवर्ती से कहीं अधिक समृद्ध आपकी 'ड्रग्स मंडली' है। आपके अनुचर नित नए 'माल' के अनुसंधान में साधनारत हैं।
जिस तरह से माल फूंकना आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, ठीक वैसी ही रिया की भी। आयात-निर्यात में लिंगभेद के लिए स्थान कहां?
अपने कर्मक्षेत्र की समाधि पर खड़े हे गुरुवरों! आपके कुकृत्यों पर हम लाज से गड़े जा रहे हैं। शवों का व्यापार करना राजनीति की परिपाटी रही है। आप जुझारू हैं, आपने राजनितिज्ञों का एकाधिकार ख़त्म कर दिया है।
ऊब हो रही है, घुटन भी। उस मनहूस घड़ी को कोसने का मन कर रहा है जिस घड़ी मसीजीविता की राह पर चले थे।
आत्मश्लाघा में पगलाये हुये नहुषों, पतित होकर अजगर ही होना है। एक दिन ऐसा आ सकता है कि कुकुरमुत्तों की छाया में बरगद पले।
पितृपक्ष है, आप पितरों की साधना पर शौच कर रहे हैं। आत्मावलोकन करें, आपको, अपने-आप से घिन आएगी।
-अभिषेक शुक्ल.