बुधवार, 10 जून 2015

शून्य होंगे जब सारे भाव एक होंगे दो धुर विपरीत





तुम्हारे मधुर गीत के बीच
लयों का आरोहण-अवरोह,
और तुमसे एकल संवाद
आह कैसे ना उपजे मोह ?

अधर से निकले प्यारे गीत 
ह्रदय को मेरे लेते मोह,
चाहता मन समीप्य का भाव 
तुम्हें इसकी क्या कोई टोह ?

वाद्य यंत्रो पर झूमे खूब 
यामिनी तेरे पावन पांव,
नयनों में अचरज रहा अलग 
कामिनी चल बैठी क्या दांव?

गिर रहे मेरे सारे अस्त्र 
अंग सुनते न मन की बात, 
अराजक हुआ कलम का वीर 
कहो! कब तक आएगी रात?

होगा सायुज्य वहीं तुमसे 
शून्य होंगे जब सारे भाव,
एक होंगे दो धुर विपरीत 
प्रेम बरसायेगा अनुभाव।

होगी जयकार धरा पर तब 
समय भी गायेगा गुणगान,
दिशाएं हो जाएँगी धन्य 
गढ़ेगी सृष्टि नए प्रतिमान।

- अभिषेक शुक्ल

(कामायनी पढ़ने के बाद ही लिखा था....प्रसाद इफ़ेक्ट भी कह सकते हैं.)

(तस्वीर- pexels.com)

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-02-2019) को "खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है" (चर्चा अंक-3244) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    बसन्त पंचमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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