शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

जो रहे अपरिचित स्वयं से भी


मैं गीत नहीं गा सकती हूँ अब
मौन मुझे हो जाने दो
इस काल की कलरव लीला में अब
गौण मुझे हो जाने दो,
अवरुद्ध कण्ठ से गीत कहूँ यह
मुझसे न हो पायेगा
जो रहे अपरिचित स्वयं से भी वह
कौन मुझे हो जाने दो।।

(मेरी नानी पता नहीं कहाँ चली गयी.....जाने किस अनजान जगह...जाने किस अनजान देश में..बादलों के पार.दिल कह रहा है कि नानी भगवान् के पास बैठी है और हमें देखकर कह रही है....न रो दहिजरा..हम फिर आइब)

12 टिप्‍पणियां:

  1. जो सच्चे दिल से याद करते हैं उनके अपने उनसे भले ही शारीरिक रूप में नहीं लेकिन मानसिक रूप में सदा उनके करीब होते है. नानी जी जहाँ भी हो लेकिन उनका आशीर्वाद अपने पोते के साथ सदा रहेगा ...
    मर्मस्पर्शी रचना ...
    नानी को नमन!

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  2. शारीरिक रूप से दूर होने पर भी अपने कहाँ दूर होते हैं...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

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  3. मन को छू लेने वाली अभिव्यक्ति ।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-10-2015) को "तलाश शून्य की" (चर्चा अंक-2140) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ! आपकी नानी स्वर्ग से अवश्य आप पर अपना प्यार और आशीर्वाद लुटा रही होंगी ! इस अनुपम उपहार को आँखें मूँद कर महसूस करिये आपको बहुत शान्ति मिलेगी ! नानी जी को नमन !

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  6. अब नानी तो हमें देख सकती है पर हम नानी को नहीँ

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  7. अब नानी तो हमें देख सकती है पर हम नानी को नहीँ

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  8. अब नानी तो हमें देख सकती है पर हम नानी को नहीँ

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