गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

निन्दक नियरे राखिये

कुछ व्यक्तियों का मुख्य ध्येय ही निन्दा करना होता है, वे इसी पावन उद्देश्य हेतु धरती पर अवतरित होते हैं। निन्दा का विषय वैसे तो नियमित बदलता रहता है पर कुछ स्थायी चरित्र ऐसे होते हैं जो इनके विशेष लक्ष्य होते हैं। भले ही निन्दक से मिले बेचारे को वर्षों बीत गए हों पर निन्दा ऐसे करते हैं जैसे कल ही उससे मिले हों। निन्दा भी पटकथा के संवाद जैसे की जाती है।
अरे! आपने सुना नहीं वो बहुत गन्दा लड़का है, मोहल्ले भर की लड़कियों से अफेयर है उसका(जैसे कोई लड़का न होकर साक्षात् कामदेव हो)।
जान! सुना नहीं है क्या आपने उनके बारे में?बहुत गन्दा चरित्र है उनका, एक बार तो मेरे पापा ने उन्हें डाँट के घर से भगाया था।(चाहे उनके सात खानदान की औकात उस लड़के से बात तक करने की न हो, चाहे हर कदम पर उस लड़के की जरूरत उन्हें पड़े...चाहे ज़िन्दगी भर उस लड़के के परिवार के परीजीवी रहे हों इनके पुर्वज)।
आपको पता है एक बार मैंने उन्हें चौराहे पे मार करते हुए देखा था इतना क्रूर है कि किसी से भिड़ पड़ता है(चाहे इन्ही की हिफाज़त के लिए उसने दो-चार को ठोका हो और इन्ही की वजह से बदनाम हुआ हो)।
उस लड़की से इतने दिनों तक अफेयर था उसका(चाहे हर दो-चार दिन बाद इनका भी अफेयर कॉलेज और मोहल्ले के दो-चार सड़क छाप आशिकों से हो जाता हो)।

मैं कोई पटकथा नहीं लिख रहा। लोग दूसरों के चरित्र की पटकथा लिखने,प्रकाशित और प्रसारित करने से पहले अपने आप को भी देख लिया करें और ऐसे लोगों के माँ-बाप भी ज़रा अपने बच्चों की हरकतें देख लिया करें कि घर में क्या सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती रहती हैं। दूसरों के बच्चों की बुराइयाँ करने से बेहतर है कि अपने बच्चों पर नज़र रखा जाये।
बूढ़ी माँ से बर्तन धुलवाना,उससे बिना वजह लड़ना, प्रतिस्पर्धा करना, सर दबवाना, मेहमानों से बदतमीज़ी करना,बैठे-बैठे संसार भर की बुराई करना संस्कार है और एक इंसान जो किसी को अपनी बहन से ज्यादा प्यार करे और कोई उसे छेड़े तो छेड़ने वाले की मरम्मत कर दे वो गुण्डा है, चरित्रहीन है,कुसंस्कारी है? हाँ!  है। क्योंकि उसने कृतघ्नों पर उपकार किया है। उसने अपना फ़र्ज़ तो निभाया पर ये भूलकर कि जिसके लिए मैंने किया है कल वही मुझे बदनाम करेगा।
क्या करे मज़बूर है वो अपने खून से क्योंकि उसे ये हरकतें विरासत में मिली हैं। जिस परिवार का वो हिस्सा है वहां का एक ही नारा है-तुम कितनी भी मेरे साथ कृतघ्नता क्यों न करो, मुझे बदनाम क्यों न  करो मैं तुम्हारे साथ हमेशा अच्छा करूँगा। (क्योंकि मुझे यही संस्कार मिले हैं।)
एक बात कहूँ किसी दिन आप अपने भाई से झूठ-मूठ का झगड़ा कर लें और अगले दिन अपने पड़ोसियों के घर घूम लें आपके भाई की एक हज़ार खामियाँ आपको जानने को मिल जाएँगी और फिर अपने भाई को दौरे पे भेजें जहाँ-जहाँ आप गए हों। आपको अपनी भी हज़ार खामियाँ जानने को मिल जाएँगी। ये वाक़ई बेहद सच्ची और परखी हुई बात है।
हद है यार! दीवारों के भी कान होते हैं सुना नहीं है क्या? एक भाई से दुसरे भाई की शिकायत करोगे तो क्या बातें पच जाएँगी? बहुत बेवक़ूफ़ हो यार...हम साथ-साथ पले-बढ़े हैं। टॉफी तो हम छिपा नहीं पाते थे एक-दुसरे से ये तो बातें हैं। सब कुछ ख़बर मिलती है...वो भी अक्षरशः....इतनी बड़ी बेवकूफ़ी तो आपको नहीं करनी चाहिए। एक भाई से दुसरे भाई की बुराई? दिमाग़ तो ठीक है न आपका?
किसी की नज़रों में आप महान नहीं हो सकते किसी को नीचा दिखा कर।
कितना फालतू समय है आपके पास बैठकर उसकी बुराई करने का जिसके पास सुबह से लेकर शाम तक काम का ढ़ेर लगा रहता है? जिसे आपके बारे में सोचने तक का समय नहीं है उसके व्यक्तित्व पर आप शोध कर रहे हैं....कोई और काम नहीं है क्या आपके पास अनावश्यक नुक्ताचीनी करने के अलावा?
बहुत अच्छा है आप अपने काम को इसी समर्पण के साथ करते रहिये आपकी बहुत जरुरत है हमें...मन तो कर रहा है आपको अपने ही घर में लेते आऊँ पर....
हिन्दी के एक बड़े होनहार सिपाही ने एक बात कही है जो मुझे बहुत प्रिय है..आपने भी सुनी ही होगी-
निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय,
बिन साबुन-पानी बना निरमल करे सुभाय।।
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद......कान में मैल जमी थी अब साफ़ हो गई...अरे हाँ! सुना है आपके पास पूरी दुनिया के चरित्र प्रमाणपत्र का ठेका है? एक तथ्य निष्पक्ष होकर कहेंगे दुनिया से.......आपका चरित्र कैसा है?

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

जो रहे अपरिचित स्वयं से भी


मैं गीत नहीं गा सकती हूँ अब
मौन मुझे हो जाने दो
इस काल की कलरव लीला में अब
गौण मुझे हो जाने दो,
अवरुद्ध कण्ठ से गीत कहूँ यह
मुझसे न हो पायेगा
जो रहे अपरिचित स्वयं से भी वह
कौन मुझे हो जाने दो।।

(मेरी नानी पता नहीं कहाँ चली गयी.....जाने किस अनजान जगह...जाने किस अनजान देश में..बादलों के पार.दिल कह रहा है कि नानी भगवान् के पास बैठी है और हमें देखकर कह रही है....न रो दहिजरा..हम फिर आइब)

रविवार, 4 अक्टूबर 2015

ए-दिल! इश्क़ की राहों में


फिर तबीयत बिगड़ रही है ए-दिल! इश्क़ की
राहों में
फिर मेरा दिल तड़प रहा है रात कट रही
आहों में,
फिर सुलगी है इक चिंगारी फिर दिल तेरे
पनाहों में,
फिर तू दौड़ी-दौड़ी आजा कोरी-कोरी
बाँहों में
(wonderful
painting by my sister himani)