जब रहें हमको छोड़ चुकें
कदम थके और हारे हों,
जब अंतस में पीड़ा कौंधे
और जग प्रतिकूल हमारे हो,
तब मन प्रच्छन्न नास्तिकता की
मैली चादर को ढ़ोता है,
पीड़ा की सरिता बहती है
और हृदय अनवरत रोता है।।
कदम थके और हारे हों,
जब अंतस में पीड़ा कौंधे
और जग प्रतिकूल हमारे हो,
तब मन प्रच्छन्न नास्तिकता की
मैली चादर को ढ़ोता है,
पीड़ा की सरिता बहती है
और हृदय अनवरत रोता है।।
ऐसे में हिम्मत का साथ जरूरी होता है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण शब्द ...
आभार सर, स्वर में स्वर देने के लिए ।
हटाएंसुन्दर भावनाएं ! प्रेरित करते शब्द लिखे हैं अभिषेक जी आपने
जवाब देंहटाएंआभार योगी भईया।
हटाएंबहुत भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंआभार सर।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएं