प्रिय तुम मधु हो जीवन की,
तुम बिन कैसी मधुशाला?
जिसमे तुम न द्रवित हुए ,
किस काम की है ऐसी हाला?
तुम शब्द हो मेरे भावों के
तुम पर ही मैंने गीत लिखे,
तुमको सोचा तो जग सोचा,
और समर भूमि में प्रीत लिखे,
अवसाद तुम्ही, प्रमाद तुम्ही,
आशा और विश्वास तुम्ही ,
भावों के आपाधापी की
प्रशंसा और परिहास तुम्ही.
तुम्हे व्यक्त करूँ तो करूँ कैसे?
शब्द बड़े ही सीमित हैं,
किन भावों का उल्लेख करूँ?
जब भाव तुम्ही से निर्मित हैं.
तुम प्राण वायु तुम ही जीवन,
तुमको ही समर्पित तन-मन-धन,
जब -जब भी तुम शून्य हुए
जीवन कितना निर्जन-निर्जन?
तुम व्यक्त, अव्यक्त या निर्गुण हो,
इसका मुझको अनुमान नहीं,
मेरे बिन खोजे ही मिल जाना,
तुम बिन मेरी पहचान नहीं.
तुम बिन कैसी मधुशाला?
जिसमे तुम न द्रवित हुए ,
किस काम की है ऐसी हाला?
तुम शब्द हो मेरे भावों के
तुम पर ही मैंने गीत लिखे,
तुमको सोचा तो जग सोचा,
और समर भूमि में प्रीत लिखे,
अवसाद तुम्ही, प्रमाद तुम्ही,
आशा और विश्वास तुम्ही ,
भावों के आपाधापी की
प्रशंसा और परिहास तुम्ही.
तुम्हे व्यक्त करूँ तो करूँ कैसे?
शब्द बड़े ही सीमित हैं,
किन भावों का उल्लेख करूँ?
जब भाव तुम्ही से निर्मित हैं.
तुम प्राण वायु तुम ही जीवन,
तुमको ही समर्पित तन-मन-धन,
जब -जब भी तुम शून्य हुए
जीवन कितना निर्जन-निर्जन?
तुम व्यक्त, अव्यक्त या निर्गुण हो,
इसका मुझको अनुमान नहीं,
मेरे बिन खोजे ही मिल जाना,
तुम बिन मेरी पहचान नहीं.
बहुत सुन्दर !अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट वो दूल्हा....
लेटेस्ट हाइगा नॉ. २
तुम प्राण वायु तुम ही जीवन,
जवाब देंहटाएंतुमको ही समर्पित तन-मन-धन,
जब -जब भी तुम शून्य हुए
जीवन कितना निर्जन-निर्जन?-------
बहुत सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी पधारे
http://jyoti-khare.blogspot.in
कल 05/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
तुम्हे व्यक्त करूँ तो करूँ कैसे?
जवाब देंहटाएंशब्द बड़े ही सीमित हैं,
किन भावों का उल्लेख करूँ?
जब भाव तुम्ही से निर्मित हैं.......बहुत सुंदर.......
वाह्ह्ह बहुत सुन्दर ..लयात्मक .. प्रेमानुभूति के अहसासों से लबरेज ..बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु आभार........आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी