शुक्रवार, 24 अगस्त 2012
...मेरी मिट्टी...
मेरी मिट्टी पुकारती मुझको ,
लौट आओ मेरे अंचल में ;
तेरी आंखे सूनी सूनी हैं ,
आजा भर दू इनको काजल से ;
मेरी गलियां पुकारती मुझको
लौट आ तू मेरी राहों में ;
उडती धुल मुझसे कहती है
सिमट जा आज मेरी बाहों में ;
ये खड़े पेड़ मुझसे कहते हैं
मुझे तुझ से बात करनी है ;
ज़रा पास से गुजर जा तू
मैं जड़ हु तू मेरी टहनी है ;
हवाओं ने कहा चुपके से
ये रात सहमी सहमी है ;
तेरा इंतज़ार है मुझ को
मुझे तुझ से बात करनी है.........
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