एक लड़की अपने प्यार के साथ भागने के लिए कैसे भी तैयार हो जाती है, बिना कुछ सोचे-समझे लेकिन लड़के बहुत सोचते हैं। उनके लिए बेड सेफ़ साइड है, लिव-इन या शादी मुश्किल। मां-बाप शादी के लिए तैयार भी हों तो भी, लड़के अकसर बचते हैं। वजह बेहतर की तलाश हो, या कुछ और लेकिन अकसर ऐसा होता है। प्रैक्टिकल में लड़कियां ज़्यादा सीरियस होती हैं रिश्तों को लेकर, लड़के भागना चाहते हैं रिश्तों से। अपवाद भी हैं।
कहानी मनमर्ज़ियां की...
अगर डायरेक्टर दमदार हो तो एक्टर की कायापलट करने में उसे ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। अनुराग कश्यप ने वही किया है विकी कौशल के साथ। विकी कौशल शक्ल से बेहद मासूम नजर आते हैं। भोले-भाले स्मार्ट नौजवान टाइप; लेकिन मनमर्जियां में उनके कैरेक्टर को देखने के बाद विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि वे मसान, राज़ी, लस्ट स्टोरीज या संजू वाले विकी कौशल हैं।
मनमर्ज़ीयां में उन्होंने ख़ुद को पूरी तरह बदल लिया है।
तापसी पन्नू अच्छी एक्ट्रेस बनकर उभरी हैं। इस फ़िल्म में उनकी शुरुआती सनक देखने लायक है। कंगना याद आती हैं। थोड़ी सी सनकी टाइप।
कनिका ढिल्लन ने कहानी अच्छी लिखी है। हालांकि कहानी बिलकुल फ़िल्मी है। रूमी(तापसी) की तरह उदार पेरेंट्स शायद ही भारत में होते हों। अगर होते भी होंगे तो उन्हें विलुप्तप्राय जीव की श्रेणी में डालकर रेड लिस्ट में रखने लायक है।
फ़िल्म की कहानी जैसी भी है, अनुराग कश्यप ने उसे पर्दे पर ख़ूबसूरती से उतारा है। फ़िल्म के क्लाइमेक्स में आपको कई फिल्मों की कहानियां याद आ सकती हैं।
कौन-कौन सी, यह फ़िल्म देख लीजिए फिर बताइए।
फ़िल्म में असली ट्विस्ट मध्यांतर के बाद आता है। असली कहानी तभी शुरू होती है। अभिषेक बच्चन एक्टिंग में वापसी अरसे बाद हुई है। उनके करियर की बीते कई वर्षों में आई रिक्तता को भरने वाली फ़िल्म है यह।
फ़िल्म की शुरुआत में उनकी एक्टिंग ज़रा भी नहीं लुभाती लेकिन मध्यांतर के बाद असली हीरो वही हैं।
विकी कौशल विकी के ही किरदार में हैं। रूमी के किरदार में हैं तापसी। रॉबी बने हैं अभिषेक बच्चन।
विकी है लापरवाह प्रेमी, उसका प्यार बस बेड पर परवान चढ़ता है। प्यार कम और फ़्यार ज़्यादा करना होता है. प्यार भी उसका अलग की क़िस्म का है. ज़िद्दी आशिक़ टाइप। इमरान हाशमी याद आते हैं फ़िल्म में कई बार। मर्डर-2 के इमरान हाशमी का डायलॉग सूट करता है विकी के किरदार पर, 'तुम मेरी ज़रूरत हो।'
विकी की ज़रूरत लगी है रूमी।
अभिषेक बिलकुल मर्यादा के अवतार लगे हैं। भूत ही समझिए, होते तो हैं, दिखते नहीं ऐसे पुरूष। इतना शालीन, मर्यादा वाला लड़का आसपास में मैंने नहीं देखा, अगर आपने देखा हो तो फ़ौरन चरण गहो, देवता है वह आदमी.
फ़िल्म में दो लड़कियां आती-जाती रहती हैं. जब भी कहानी में नया मोड़ आना होता है दोनों दिख जाती हैं. पहले लगता है कि इनका भी कोई किरदार होगा लेकिन ये बस होती हैं.
फिल्म के कुछ गाने बेहद अच्छे हैं. दरया, चोंच लड़ियां, सच्ची मोहब्बत. अमित त्रिवेदी म्यूजिक डायरेक्शन कई जगह बहुत कर्कश लगा है लेकिन ओवरऑल ठीक है.
वक़्त निकालिए, अरसे बाद कोई मूवी आई है जिसे देखा जा सकता है. देखकर यही कहेंगे-
इश्क़ में मनमर्ज़ियां चलती नहीं, बस मोहब्बत होनी होती है, हो जाती है।
कहानी मनमर्ज़ियां की...
अगर डायरेक्टर दमदार हो तो एक्टर की कायापलट करने में उसे ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। अनुराग कश्यप ने वही किया है विकी कौशल के साथ। विकी कौशल शक्ल से बेहद मासूम नजर आते हैं। भोले-भाले स्मार्ट नौजवान टाइप; लेकिन मनमर्जियां में उनके कैरेक्टर को देखने के बाद विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि वे मसान, राज़ी, लस्ट स्टोरीज या संजू वाले विकी कौशल हैं।
मनमर्ज़ीयां में उन्होंने ख़ुद को पूरी तरह बदल लिया है।
तापसी पन्नू अच्छी एक्ट्रेस बनकर उभरी हैं। इस फ़िल्म में उनकी शुरुआती सनक देखने लायक है। कंगना याद आती हैं। थोड़ी सी सनकी टाइप।
कनिका ढिल्लन ने कहानी अच्छी लिखी है। हालांकि कहानी बिलकुल फ़िल्मी है। रूमी(तापसी) की तरह उदार पेरेंट्स शायद ही भारत में होते हों। अगर होते भी होंगे तो उन्हें विलुप्तप्राय जीव की श्रेणी में डालकर रेड लिस्ट में रखने लायक है।
फ़िल्म की कहानी जैसी भी है, अनुराग कश्यप ने उसे पर्दे पर ख़ूबसूरती से उतारा है। फ़िल्म के क्लाइमेक्स में आपको कई फिल्मों की कहानियां याद आ सकती हैं।
कौन-कौन सी, यह फ़िल्म देख लीजिए फिर बताइए।
फ़िल्म में असली ट्विस्ट मध्यांतर के बाद आता है। असली कहानी तभी शुरू होती है। अभिषेक बच्चन एक्टिंग में वापसी अरसे बाद हुई है। उनके करियर की बीते कई वर्षों में आई रिक्तता को भरने वाली फ़िल्म है यह।
फ़िल्म की शुरुआत में उनकी एक्टिंग ज़रा भी नहीं लुभाती लेकिन मध्यांतर के बाद असली हीरो वही हैं।
विकी कौशल विकी के ही किरदार में हैं। रूमी के किरदार में हैं तापसी। रॉबी बने हैं अभिषेक बच्चन।
विकी है लापरवाह प्रेमी, उसका प्यार बस बेड पर परवान चढ़ता है। प्यार कम और फ़्यार ज़्यादा करना होता है. प्यार भी उसका अलग की क़िस्म का है. ज़िद्दी आशिक़ टाइप। इमरान हाशमी याद आते हैं फ़िल्म में कई बार। मर्डर-2 के इमरान हाशमी का डायलॉग सूट करता है विकी के किरदार पर, 'तुम मेरी ज़रूरत हो।'
विकी की ज़रूरत लगी है रूमी।
अभिषेक बिलकुल मर्यादा के अवतार लगे हैं। भूत ही समझिए, होते तो हैं, दिखते नहीं ऐसे पुरूष। इतना शालीन, मर्यादा वाला लड़का आसपास में मैंने नहीं देखा, अगर आपने देखा हो तो फ़ौरन चरण गहो, देवता है वह आदमी.
फ़िल्म में दो लड़कियां आती-जाती रहती हैं. जब भी कहानी में नया मोड़ आना होता है दोनों दिख जाती हैं. पहले लगता है कि इनका भी कोई किरदार होगा लेकिन ये बस होती हैं.
फिल्म के कुछ गाने बेहद अच्छे हैं. दरया, चोंच लड़ियां, सच्ची मोहब्बत. अमित त्रिवेदी म्यूजिक डायरेक्शन कई जगह बहुत कर्कश लगा है लेकिन ओवरऑल ठीक है.
वक़्त निकालिए, अरसे बाद कोई मूवी आई है जिसे देखा जा सकता है. देखकर यही कहेंगे-
इश्क़ में मनमर्ज़ियां चलती नहीं, बस मोहब्बत होनी होती है, हो जाती है।
अच्छी समीक्षा.
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