शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

नाविकों के तन विवशता से मनुजता ढो रहे हैं














जिस प्रलय की धार में तुम यूं प्रफुल्लित हो रहे हो
जाल में उसकी उलझकर कुछ अभागे रो रहे हैं,
उम्रभर की सब कमाई आंसुओं में बह गई है
स्वप्न की कुटिया नयन के सामने वे खो रहे हैं।

पीर का विस्तार देखो हर तरफ जल ही भरा है
नाव के सौदागरों में कुछ थके हैं सो रहे हैं,
भार पतवारों पे इतना कि घिसटकर टूटते हैं 
नाविकों के तन विवशता से मनुजता ढो रहे हैं।


कौन सी मिट्टी तुम्हारे बुद्धि के तट पर पड़ी है
नाश की सारी क्रियाएं क्यों तुम्हें उल्लास लगतीं,
भावना को भस्म कर जो तुम जगत से खेलते हो
मृत्यु की सारी कलाएं क्यों तुम्हें परिहास लगतीं।

सत्य है जीवन क्षणिक है किंतु इसमें दीर्घता है
जीव के अस्तित्व को मन से कभी स्वीकार कर लो,
कुछ पलों का भ्रम समझकर मान लो तुम जी रहे हो
नाश के आभास में ही प्राण का विस्तार कर लो.  


(अभिषेक शुक्ल) 

(इमेज सोर्स- पीटीआई) 

मंगलवार, 3 जुलाई 2018

वेदना का अंत बहुत सुखद होता है





वेदना का अंत बहुत सुखद होता है। प्रायः, हर बार नहीं। 



सुख मूल्य वसूलता है। कुछ का जीवन कइयों की मृत्यु की परिणति है।



हर दुख की वैतरणी को पार करने के लिए कोई न कोई ऐसी नाव मिल जाती है जो अंततः सुख के तट तक पहुंचा ही देती है।



कुछ दुखों का कोई उपचार नहीं, कुछ घटनाओं का भी। किसी कहानी के कुछ पत्रों की अपूर्ण गति यह कभी नहीं दर्शाती कि उनके साथ कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटित हुआ।



 सब स्वाभाविक है, सबका अपना-अपना प्रारब्ध है। सब किसी अंतहीन यात्रा की ओर आगे बढ़ रहे हैं शनैः शनैः। 

हर बलदेव विवश है, हर कालीचरण जूझ रहा है। हर तहसीलदार भीतर से टूट रहा है, कुछ बन रहा है, कुछ बिगड़ रहा है।  



बेतार अपना काम जारी रखे हुए है। हर कमली कुछ समय तक अभिशप्त है, मौसी की ममता हर जगह वेदना पा रही है। स्वजनों की व्याधि उसे डायन बना रही है। कोई कहीं छिपा बैठा है लाठी लेकर प्राण हतने हेतु। 



 प्रेम में सब कुछ पा लेना ही प्रेम नहीं, कुछ खो देना ही प्रेम नहीं...जूझते रहना ही प्रेम है।



दिन बहुरते हैं, जब तक न बहुरें प्रतीक्षा करने में नुकसान कुछ भी नहीं है।



'कहानी मैला आंचल की.'



नोट: तस्वीर, आत्ममुग्धता के चलते चिपकाई गई है।