गुरुवार, 3 मार्च 2022

प्रतिरोध की आवाज़ क्यों कर्कश लगती है?

 कभी-कभी कुछ काम इंसान अनायास ही कर बैठता है. कोई प्रयोजन पूछ ले तो भरसक उत्तर न सूझे. प्रयोजन होता भी नहीं है. जैसे यह सब लिखने का कोई प्रयोजन नहीं है, अनायास ही लिख रहा हूं. दो-तीन साल पहले तक लिखने की आदत थी. कभी-कभी कविता, अकविता, कहानी, निबंध या जो बन पड़ता, लिख देता था. मानता था कि लिखना अच्छी आदत है. पता नहीं कैसे आदत छूट गई. 

मतलब लिखना छूटा नहीं है, स्वांत: सुखाय लेखन छूट गया है. एक दिन किसी ने कहा कि लिखते क्यों नहीं हो. मैंने कहा कि लिखा नहीं जा रहा है. एक उस्ताद जैसे दोस्त ने कहा कि राइटर्स ब्लॉक का नाम सुना है. मैंने नहीं सुना था. बात टालनी थी मैंने कहा कि नहीं जनाता.

उन्होंने कहा कि एक अवस्था है, जिससे लिखने-पढ़ने वाले लोग ज़िन्दगी के किसी न किसी हिस्से में ज़रूर जूझते हैं. ठीक हो जाएगा लिखने लगोगे. ध्यान दिया तो कुछ ऐसा ही लगा. थोड़ा बहुत इसके बारे में ढूंढकर पढ़ा तो पता चला कि ऐसा होता है. राइटर्स ब्लॉक भी कोई बला है, इसे ज़रा देर से जाना.


मैं इन दिनों कुछ भी नया नहीं लिख रहा हूं. साहित्य के नाम पर दोहा नहीं लिखा जा रहा है. कुछ सीख भी नहीं पा रहा हूं. कई सारी उलझी चीज़ों में दिमाग उलझा है. ठीक उसी तरह जैसे समाज का एक बड़ा तबका मेंटल ब्लॉक से गुजर रहा है.

उसे कुछ न समझ आ रहा है, क्या करना है यह भी पता नहीं चल रहा है. क्या आस पास हो रहा है, इन सबमें उलझा है. अज्ञात डर खाए जा रहा है. लोगों के प्रति असहिष्णुता इतनी बढ़ गई है कि कुछ भी सुनने से पहले उसकी प्रतिक्रिया आ जाती है.

सच कहूं तो राइटर्स ब्लॉक से किसी एक शख्स को खतरा होता है. मेंटल ब्लॉक से समाज को. राइटर्स ब्लॉक ठीक हो य न ठीक हो लेकिन मेंटल ब्लॉकेज खुलनी चाहिए. तभी शायद बात बने.

(फोटो सोर्स- Flicker)

1 टिप्पणी:

  1. राईटर ब्लॉक मैंने भी आज पहली बार जाना। शायद इसी दौर गुजर रहा हूँ मैं।
    मेंटल ब्लॉकेज गुलामी की शुरूआत होती है।
    नई रचना धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा

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