सोमवार, 26 जनवरी 2015

"सर्वत्र विजय"(विजयी विश्व तिरंगा प्यारा)

हे हिम! तू मुझको हिम सा कर दे
पर मुझको इतना सा वर दे
प्रांतर पर जो  गतिविधि हो
वह मुझको भी सूचित हो
यदि पग शत्रु के इधर बढ़ें
तो उनका न अस्तित्व रहे
न रहे शेष उनमे जीवन
बस इतना सा है मेरा मन।
यदि तुम ऐसा न कर पाओ
तो जाओ,
महाकाल से तुम डर जाओ
हम सैनिक हैं सब सह लेंगे
और गलो तब भी रह लेंगे
सियाचीन या अरुणांचल हो
इस जग में नभ्-जल या थल हो
"सर्वत्र विजय" संकल्प हमारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा।
(कुछ अपूर्ण सी कविता, अधिक समय नहीं दे सका क्योंकि 28jan से परीक्षा शुरू हो रही है अब ब्लॉग पर 12feb. तक नहीं आ सकूँगा। आप के शुभ आशीष की प्रतीक्षा में आपका-अभिषेक)

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