शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

आज का रावण



विजय दशमी; पाप पर पुण्य की विजय गाथा जिसे भारतीय सदियों से मनाते चले रहें हैं हर साल बुराई के सबसे बड़े प्रतीक की प्रतिमा जलाई जाती है पर वह प्रतीक अमर है. कभी मरता ही  नहीं जैसे अजन्मा हो. हर साल रावण दहन होता है पर कलियुग में शायद रावण की प्रवित्ति बदल गयी है अथवा उसने स्वर्ग में जाकर रक्तबीज से संधि कर ली है कि जितने  व्यापक स्तर पर रावण का वध होता है उतने ही रावण उसे जलता देख तैयार होते हैं, रक्तबीज का तो रक्त धरती पर गिरता था तब नया रक्तबीज पैदा होता था पर कलियुग में तो मामला उल्टा है. यहाँ देखने मात्र से रावण जन्म लेते हैं. रावण भले ही विदेशी हो पर उसके अनुयायी शत -प्रतिशत स्वदेशी हैं. लंका में तो भारत से कम नारी उत्पीड़न के मामले सुनने को मिलते हैं मतलब साफ़  है कि वहां वाले रामभक्त बन गए हैं और भारतीय रावण. अगर आज के रावण की तुलना कल के रावण से की जाए तो आज वाले रावण में त्रेता युग के रावण से कहीं अधिक राक्षसता दिखती है. रावण के दस सर थे तब तो उसने एक सीता को हरा पर आज का रावण तो बस एक सर का है पर जाने कितनी सीताओं की अस्मिता हरी जाती है.तब एक रावण था और एक राम थे पर आज रावण ही रावण हैं और राम कहीं दिखते भी नहीं. आज का रावण इतना शक्तिशाली है की राम उसके भय से किसी अज्ञात  पर्वत पर किसी सुग्रीव की गुफा में शरणार्थी हैं.
     रामायण, रामचरित मानस दोनों ग्रंथों में कहीं भी रावण की अशुचिता नहीं दिखती, रावण का व्यभिचार भी कहीं नहीं दिखता, रावण वंचक तो अवश्य था पर बलात्कारी नहीं. आज के रावण में ये भी खूबी है. अभद्रता तो जन्मजात गुण है बाकी जो बचता है वह उपार्जित है. अब तो समाज के इन कलंकों की तुलना लंकाधिपति रावण से करने में भय लगता है कहीं रावण बुरा मान जाए कि; "मेरी तुलना इन पापियों से की जा रही है जबकि मैं इनसे बहुत पवित्र हूँ.'' आजकल राम, हनुमान,सुग्रीव, अंगद या जामवंत जन्मे या जन्मे पर रावण और  विभीषण हर घर में पैदा हो रहे हैं, पर रावण का पडला भरी देख उसी से चिपके रहते हैं. घर बनते हैं, परिवार टूटते हैं, छोटा भाई बड़े भाई को रावण कहता है पर राम  के काम नहीं आता. निःसंदेह यही तथ्य है जिसकी वजह से कोई अपने संतान का नाम विभीषण नहीं रखता.
      हनुमान जी को अमर कह जाता है.रामचरित मानस में अवधी में बड़ी सुन्दर चौपाई है जब अशोक वाटिका में माँ  सीता हनुमान जी से प्रभु श्री राम का कुशल-क्षेम पूछती हैं, और सब जानने के बाद हनुमान जी को वरदान देती हैं-
"अजर, अमर, गुणनिधि, सुत होहु' करहु बहुत रघुनायक छोहू''.
वरदान माँ सीता का है तो निष्फल होने का औचित्य  ही  नहीं है. राम भगवान भले ही महाप्रयाण कर चुके हों पर हनुमान जी तो धरती पर हैं फिर क्यों नहीं किसी सीता की अस्मिता बचाने आते हैं? क्या बस भगवान श्री राम के जीवन तक ही उनका शौर्य था? क्या महाबली भी अब शक्तिहीन हैं या समाज में राक्षसों के कृत्यों को  मूक दर्शक बन देखते रहना चाहते हैं? अथवा कलियुगी मानव कापियों से यह कहना चाहते हैं कि "उठो, अब तो अन्याय के विरूद्ध लड़ो, कब तक राम की प्रतीक्षा में कायर बने रहोगे, तब तो लंका की दिशा अनभिज्ञ थी पर अब तो गली -गली में लंका है, संगठित हो और विध्वंश कर दो रावण सहित लंका का.''
  हर शहर में जाने कितनी महिलाएं, युवतियां और जाने कितनी छोटी, मासूम बच्चियों को जबरन वेश्यालयों में बिठाया जाता है, धकेला जाता है उन्हें हवस के पुजारियों के आगे, चीखती हैं, पिसती हैं समाज के दरिंदों के हाथों में, पर कुछ दिन बाद वो शून्य हो जाती हैं.जिन्दा तो होती हैं पर एक अभिशाप की तरह. भले ही भारत में भारतीय दंड संहिता के धरा ३७२ और ३७३ में  वेश्यालय संचालकों  को और दलालों   को पकडे जाने पर "दस वर्ष के सश्रम कारावास की सजा'' हो पर हाथ कोई नहीं आता. पुलिस को मोटी-तगड़ी रकम मिलती है फिर कौन बोलने जाए. दुनिया की सबसे निकम्मी कौम भारतीय  पुलिस ही है. जिसके बारे में अक्सर देखने और सुनने को मिल जाता है.इन लंकाओं में फसी हुई लड़कियों के उद्धार के लिए कोई राम या हनुमान नहीं आते क्योंकि ये लड़कियां किसी राजा की पत्नी, बेटी या बहन नहीं होती, जनता को मतलब नहीं होता और प्रशासन दुःशासन का भाई है वह ऐसे काम क्यों करे उसे तो बस धन चाहिए.
  यदि आज कोई राम नहीं बन सकता, हनुमान के पदचिन्हों पर चल नहीं सकता तो बंद करो ये तमाशा. मत जलाओ रावण को, अगर रावण को राक्षस कहते हो तो उससे करोड़ गुनी राक्षसता तो तुम ढोते हो, फिर खुद को क्यों नहीं जलाते? रावण ने जो किया उसकी सजा उसे त्रेता युग में ही मिल गयी थी पर आप जो करते हो उसके बारे में कभी सोचा है?

5 टिप्‍पणियां:

  1. पुलिस ही क्यों हम सब भी बराबर के हिस्सेदार हैं भाई इन पापकर्मों में ।

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  2. bahut achha aur sateek lekh hai aapka....samaj ka har varg ji jimmedariyan bhule baitha hjai , police to kathputli hai .....burai hamare mano me hai wah jalayee jayegi tabhi asli ravan jalega...

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  3. Samaj me pehale badlaw lana hoga or uske pehale / Hamare khud ke ghar me ...bcz boys ko bachpan se woman's ki respect karna sikhani hogi...agr ek pati apni wife ke respect karta hai or ek pita apni beti ki tab / beta bhi ghar se girls ki or woman's ki respect karna sikhta hai....surwat hume hamare ghar se karni hogi...boys ko sanskar dena bahut jaruri hai...fir samaj ko suthara jaa sakta hai....
    Waise Abhishek ji aapne acha lika hai
    Thanks

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    1. Deepti ji, Sorry but सारी बुराई की जड़ आपने पुरुष को ही बता दिया। लेकिन कभी इस तरफ भी ध्यान दिया है कि एक औरत ही माँ के रूप में बीटा और बेटी में फ़र्क़ करती है. शायद एक पिता से ज़्यादा। एक औरत ही सास के रूप में औरत (बहू) पर ज़ुल्म करती है. यहाँ तक कि कोठे जहाँ एक नारी की इज़्ज़त तार तार होती है उसे भी चलाने वाली औरत ही होती है. फिर सारा इलज़ाम पुरुष पर ही क्यों?

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  4. रामायण, महाभारत, चारो वेद, पुराण, मनुस्मृति, श्रुति सभी हिन्दूवादी ग्रंथ झूठ-फरेब और यहाँ के मूलनिवासियों को गुलाम बनाने वाली गं्रथ है मेरे भाई।

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