बुधवार, 26 सितंबर 2012

.........बचपन .......

'' जब मैं छोटा बच्चा था,
 बस्ते में किताबें होती थी,
 हम चलते चलते थकते थे ,
 राहें कंकर की होती थीं .
 टेढ़े मेढ़े रास्तों में हम
 अक्सर गिर जाते थे ,
सड़कों को पैर से मार मार कर,
 भैया दिल बहलाते थे ,
मैं तो रो पड़ता था हरदम,
 आग उगलती गर्मी से ,
भैया मुझको गोद उठता,
 मम्मी जैसी नरमी से ,
जिन राहों से हम आते थे,
 थे वह बंजारों के डेरे ,
जब हम उनको दिख जाते थे ;
 मोटी मोटी लाठी लेकर,
 आस पास मंडराते थे,
 तब जब पीछे से एकदम,
 भैया जब आ जाता था,
 सबको मार मार कर,
ताड़ी पार कर आता था ,
 मुझको अब भी याद आती हैं,
भूली बिसरी सारी बातें ,
 जाने क्यों चुप चाप कही से ,
 भर आती हैं मेरी आँखें ,
 आज बदल गया है सब कुछ ,
सब कुछ फीका फीका है,
 मतलब की दुनिया है यारों,
 कोई नहीं किसी का है ,
 अब भी पढ़ते हैं हम सब,  
सब कुछ बदला बदला है,
 कही धुप कही छावं है,
 कुछ भी नहीं सुनहरा है,
 सड़के पक्की हो गयी अब तो ,
 पर उनमें है खाली पन,
 मुझको अक्सर याद आता है,
अपना प्यरा प्यारा बचपन ......''

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें