कभी-कभी न ख़्याल आते हैं न ख़्वाब। ऐसा क्यों होता है, इसकी कोई वाजिब वजह पता नहीं। शायद पता भी न चले।
ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली है, हम कई दफ़ा सुन चुके हैं। सुनते रहे हैं, या शायद सुनते रहेंगे। लेकिन हर पहेली, सुलझती है, धीरे-धीरे वक़्त के साथ। सबका कोई एक जवाब होता है। पर ज़िन्दगी, लाजवाब है। कुछ पता ही नहीं चलता। कभी, कभी भी।
एक साथ, क्या-क्या चलता है दिमाग़ में ज़ाहिर कर दें तो मुसीबत, न करें तो ऐसा लगे कि ख़ुद के साथ ही धोखा। कई बार लगता है कि जिस रास्ते से गुज़र रहे हैं, सही नहीं है। न हो सकता है। क्योंकि आस पास किसी को उस रास्ते से गुज़रकर मंज़िल नहीं मिली। सबने ख़ुद को खो दिया है। एक क़रार कर लिया है, ज़िन्दगी के साथ कि अब जो चल रहा है, चलने दो। आधे रास्ते में हैं, आधा ही तो पार करना है।
पर पता नहीं क्यों लगता है कि उसी आधे रास्ते में गड्ढा है, जिसमें से गिरेंगे आंख मूंदकर एक रास्ते पर चलने वाले।
....ऐसा सोचना ग़लत भी हो सकता है। शायद सबकी मंज़िलें एक सी न हों। सबने अपने-अपने रास्ते चुन लिए हों कि गड्ढे से स्टेप पहले रुक जाना है, या नाव लाकर तैर जाना है।
बस नाव नहीं चहिए। तैरना नहीं आता लेकिन नाव के ज़रिए सफ़र भी करना। तैराकी सीखनी भी नहीं है।
रास्ता बदलना है। रास्ते ज़रूरी हैं, मंज़िलों के लिए। कोई एक नई राह गढ़ता है, हज़ारों उस नई राह के राही होते हैं। कई बार नहीं भी होते हैं। कई बार रास्ता बनाना ही मुमकिन नहीं होता। बन भी जाए तो कांटे उगते होंगे। चुभते भी होंगे, उन्हें निकाला जा सकता है। कुछ चुभेगा तो पता चलेगा कि ज़िन्दा हैं। बनी बनाई सड़कें आसान हैं। ऐसा लगता है कि घिसट के पहुंच जाएंगे कहीं पर।
बस दिक़्क़त घिसटने से है। यही फ़ीलिंग ठीक नहीं होती लाइफ़ में।
किसी के मंज़िल और मुस्तक़बिल में झांकना ग़लत है। टोकना और भी ग़लत। क्यों ये उम्मीद हो कि कोई मेरी ही बताई राह पर चले? क्यों पुराने ढर्रे ही सबको अच्छे लगें? क्यों न किसी को कभी भी मंज़िल बदलने का हक़ हो, राहें भी? क्यों उम्मीदें बोझ बनें? क्यों न ऐसा हो कि मंज़िल और राहें बदल देने पर अपने सवाल न करें। वेलडन, सब ठीक है। तुम सही हो, दूसरों के साथ ग़लत नहीं करते तो ख़ुद क्यों ग़लत करोगे। मिल जाएगी न यार मंज़िल, बन जाओगे न जो बनना चाहते हो। नहीं भी बने तो फिर नए रास्ते पर चलना। फ़ेल होने के डर से कोशिश नहीं करोगे? जाओ यार.....कर लो न जो करना चाहते हो।
कभी-कभी ये सब सुनने के बाद भी लगता है कि कुछ ग़लत न हो जाए। ख़ुद के साथ, ख़ुद की सुनने में। सबको लगता होगा। ऐसा सोचना ग़लत है, बहुत ग़लत। कर लो न यार जो करना चाहते हो। बहुत पेनफ़ुल है वो वाली फ़ीलिंग, जिसमें जो आप करना चाहते हो, उसे पोस्टपोन करना पड़े।
दूसरों को कुछ भी लगे, आपके करियर का सही डिसीज़न आपसे बेहतर कोई नहीं ले सकता। ज़िन्दगी सबको मौके नहीं देती, रिपीटेड लाइन है, एक्सक्लूसिव नहीं। मौके हर बार मिलते हैं। दिखते नहीं, अलग बात हैं। देखने का हुनर सीखो, जब जो मिले लपक लो....निभे तो निभा लो, न सही लगे तो रास्ते अलग।
प्रोफ़ेशन बदलना क्राइम नहीं है, क्राइम है बिना पासपोर्ट के दुनिया बदल देना।
(डायरी इन दिनों। डोंट टेक इट सीरियस, लफ़्फ़ाज़ी है...)
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