कभी-कभी हम सुन-सुन के थक जाते हैं और बोलना अपरिहार्य हो जाता है. विधाता कुछ लोगों को अद्भुत तर्क शक्ति से समृद्ध करके धरा पर भेजते हैं, ऐसे महान लोगों को न तो कोई कुछ समझा सकता है न ये समझना चाहते हैं. क्योंकि जब इन्हें औसत बुद्धि का कोई मानव कुछ समझाना चाहता है तो ये उसे अपने अकाट्य तर्कों से चुप कर देते हैं. यह ध्रुव सत्य नहीं है कि हम हमेशा सत्य ही होंगे.त्रुटियाँ सबसे होती हैं चाहे कोई कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो. सदैव अपने निर्णय सर्वश्रेष्ठ नहीं होते औसत बुद्धि के लोग भी प्रकांड पंडितों से अधिक बुद्धिमानी का कार्य करते हैं. अपने विचारों को शाब्दिक अर्थ देना उचित है किन्तु उस सीमा तक कि जब तक शब्द किसी का अहित न करे अथवा कष्ट न पहुचाये.शब्द जितने सरल होते हैं उनका प्रभाव उतना ही गहरा होता है, किन्तु कुछ अतिबुद्धिमान व्यक्ति अपना पांडित्य सिद्ध करने हेतु कुछ विशिष्ट शब्दों का चयन करते हैं जो श्रोता के मन में अकारण ही क्रोध उत्पन्न करता है. रसायन शास्त्र में अनुलग्नक और पूर्वानुलग्नक का बड़ा महत्व है, कुछ लोगो को सरल भाषा आती ही नहीं, उसमे अनायास ही पूर्वानुलग्नक और अनुलग्नक सम्मिलित करते है, फलतः अर्थ का अनर्थ हो उठता है.
लोग बोलते समय भूल जाते हैं कि वो बोल क्या रहे हैं? किसी को उससे दुःख पहुँच सकता है. दुःख की नींव पर विद्वान् बनना उचित तो नहीं हो सकता? एक शांत व्यक्ति जिसने अपने शब्दों को सीमा में बाँधा है अथवा स्वयं को वाक्पटुता के श्रेणी से परे रखा है इसका अर्थ यह नहीं कि वह जड़बुद्धि है. चुप रहने और मूर्ख होने में कोई समता नहीं होती. दुर्भाग्य से कुछ लोग शांत होने और मूर्ख होने में समता दिखाने का एक भी अवसर नहीं छोड़ते. बड़े अकाट्य तर्क होते हैं उनके पास. यदि तर्क ही सच कहने का प्रमाण हो तो दर्शन या भगवान जैसे शब्द अप्रासंगिक सिद्ध हो चुके होते.
आप अपने विचारों को पूरे दुनिया में फैलाइये, कुशल वक्ता बनिए पर ऐसा कुछ मत कहिये जिससे किसी निर्दोष व्यक्ति को कष्ट पहुंचे. आप अपने तर्क की कसौटी पर उसका अहित कर दें, भले ही इसके पीछे आपका कोई बुरा उद्देश्य न हो. शब्द तीर से अधिक पीङा दायक होते हैं और तीर चलने से बचना चाहिए क्योंकि इनका घाव बहुत गहरा होता है और घाव -नासूर वाली कहावतें तो बहुत सुनी होगी आपने. सीधे शब्दों में बोलते समय ये सोच लेना चाहिए कि शब्द तीर की श्रेणी में न आयेँ. कोई एक व्यक्ति मूक हो सकता है सारे नहीं, यदि सब जवाब देने लगें तो आप को वधिर होने से कोई रोक नहीं सकता.
खैर बोलने वाले को कब किसी की परवाह होने लगी? नसीहत है मान लेंगे तो अच्छी बात होगी, नहीं मानेंगे तो और भी अच्छी बात होगी. शब्द आपके हैं फेंकते रहिये, वादा है आपसे कोई प्रतिक्रिया नहीं दुँगा..
लोग बोलते समय भूल जाते हैं कि वो बोल क्या रहे हैं? किसी को उससे दुःख पहुँच सकता है. दुःख की नींव पर विद्वान् बनना उचित तो नहीं हो सकता? एक शांत व्यक्ति जिसने अपने शब्दों को सीमा में बाँधा है अथवा स्वयं को वाक्पटुता के श्रेणी से परे रखा है इसका अर्थ यह नहीं कि वह जड़बुद्धि है. चुप रहने और मूर्ख होने में कोई समता नहीं होती. दुर्भाग्य से कुछ लोग शांत होने और मूर्ख होने में समता दिखाने का एक भी अवसर नहीं छोड़ते. बड़े अकाट्य तर्क होते हैं उनके पास. यदि तर्क ही सच कहने का प्रमाण हो तो दर्शन या भगवान जैसे शब्द अप्रासंगिक सिद्ध हो चुके होते.
आप अपने विचारों को पूरे दुनिया में फैलाइये, कुशल वक्ता बनिए पर ऐसा कुछ मत कहिये जिससे किसी निर्दोष व्यक्ति को कष्ट पहुंचे. आप अपने तर्क की कसौटी पर उसका अहित कर दें, भले ही इसके पीछे आपका कोई बुरा उद्देश्य न हो. शब्द तीर से अधिक पीङा दायक होते हैं और तीर चलने से बचना चाहिए क्योंकि इनका घाव बहुत गहरा होता है और घाव -नासूर वाली कहावतें तो बहुत सुनी होगी आपने. सीधे शब्दों में बोलते समय ये सोच लेना चाहिए कि शब्द तीर की श्रेणी में न आयेँ. कोई एक व्यक्ति मूक हो सकता है सारे नहीं, यदि सब जवाब देने लगें तो आप को वधिर होने से कोई रोक नहीं सकता.
खैर बोलने वाले को कब किसी की परवाह होने लगी? नसीहत है मान लेंगे तो अच्छी बात होगी, नहीं मानेंगे तो और भी अच्छी बात होगी. शब्द आपके हैं फेंकते रहिये, वादा है आपसे कोई प्रतिक्रिया नहीं दुँगा..
लोग लोग होते हैं :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
सही कहा है किसी निर्दोष को आपके बोलों से कष्ट हो ... ऐसा तो नहीं होना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा मित्र।
जवाब देंहटाएंसादर
सहमत .....
जवाब देंहटाएंकोटिश: धन्यवाद, ऐसे ही स्नेह बनाऐ रखिएगा...
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर , हमे महज पांडित्य प्रदर्शन के लिए ऐसी शब्दावली से बचना होगा जिससे किसी का मन आहत हो
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