थक गया हूँ
जीवन के उतार-चढ़ाव
देखकर,
खुशियों पर भारी
पड़ते
गम देखकर,
बिन बारिश के
जहाँ
नम देखकर,
हैवानों कि बस्ती में
इंसान
कम देखकर,
खुशियों से लबरेज़
गम देखकर
थक सा गया हुँ मैं.
क्या है होना?
क्या है न होना?
कुछ भी पता नहीं;
कौन अपना
कौन पराया
अनुमान भी नहीं,
अपने ही अक्स
की
पहचान नहीं,
बीतते लम्हे
छूटते रिश्ते
बेवजह के जज्बात
उलझते रास्ते,
सब कुछ अनजाना
फिर भी
सब कुछ
खंगालने की कोशिश,
एक कसक
कुछ न कर पाने की.
हैरत में हूँ
ऐ जिंदगी तू ही बता
तू है क्या?
जीवन के उतार-चढ़ाव
देखकर,
खुशियों पर भारी
पड़ते
गम देखकर,
बिन बारिश के
जहाँ
नम देखकर,
हैवानों कि बस्ती में
इंसान
कम देखकर,
खुशियों से लबरेज़
गम देखकर
थक सा गया हुँ मैं.
क्या है होना?
क्या है न होना?
कुछ भी पता नहीं;
कौन अपना
कौन पराया
अनुमान भी नहीं,
अपने ही अक्स
की
पहचान नहीं,
बीतते लम्हे
छूटते रिश्ते
बेवजह के जज्बात
उलझते रास्ते,
सब कुछ अनजाना
फिर भी
सब कुछ
खंगालने की कोशिश,
एक कसक
कुछ न कर पाने की.
हैरत में हूँ
ऐ जिंदगी तू ही बता
तू है क्या?
wah
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकल 12/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
utam
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