वंदे मातरम्
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा.
बुधवार, 23 जनवरी 2013
जीवन
''मैंने रातों में जग के देखा,
और दिनों में सो के देखा ,
दोनों में कुछ हम खोते हैं,
हँसते भी हैं रोते भी हैं।''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
मोबाइल वर्शन देखें
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें