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बुधवार, 9 नवंबर 2016

पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।

पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए  हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी है न एक दिन मेरी बड़ाई करेंगे, तब मैं उन्हें बिलकुल भी भाव नहीं दूंगा।
पापा हमेशा की तरह मेरी बात पर मुस्कुराते हुए  आगे बढ़ जाते।
मुझे कभी नम्बर की वजह से डांट नहीं पड़ी। भइया थोड़े परेशान हो जाते थे इस बात पर। उन्हें लगता कहीं मैं औरों से कमजोर न पड़ जाऊँ।
ख़ैर थोड़ा बड़ा हुआ तो सब ठीक हो गया। पढ़ने वाले विषयों को कंठस्थ कर लेता। सारे विषयों के सैद्धांतिक पक्ष कंठस्थ रहते तो सहपाठियों को लगता बहुत पढ़ाकू हूं।मैं भी भरपूर ज्ञान बांटने में कोई विलंब नहीं करता, सबको शिक्षा बांटता।
ख़ैर मुझे पता था कि मुझे कुछ नहीं पता है।
बचपन में हरिराम आचार्य जी पता नहीं क्यों महीने में दो चार बार शिकायती पत्र लिख कर पापा के नाम भेज देते और मुझसे कहते हस्ताक्षर करा के लाओ। वो सोचते घर पे कुटाई होगी मेरी पर उनकी मंशा पर घर वाले पानी फेर देते।पढ़ाई को लेकर कभी कूटा नहीं गया।
स्कूल से ज़्यादा भइया ने मुझे पढ़ाया। गणित को छोड़कर सारे विषय मेरे ठीक-ठाक थे, भइया ने बेइज्जती न होने भर का गणित सिखा दिया था, जब कॅापी चेक होती तो पिटाई से बच जाता, बहुत दिनों तक इतना ही रिश्ता रहा मेरा गणित से।ग्यारहवीं में तो मैंने तलाक ही ले लिया गणित से। फिर कानून की पढ़ाई और अब पत्रकारिता की।
यकीन ही नहीं होता इन लम्हों को गुजरे हुए एक वक्त बीत गया।
मेरा साहित्य अब किशोर हो रहा है। टूटा-फूटा ही सही पर लिखते हुए एक दशक से ज्यादा हो गया। लिखना आज भी नहीं आया।
आज मैंने पुरानी डायरियों को खोज निकाला। एक अटैची में सुरक्षित रखी हुईं मिलीं। बचपन आंखों के सामने तैरता हुआ नज़र आया। बीते कल को महसूस किया।
तब भाषाई अशु्द्धियां अधिक थीं पर  भावनाएं निश्छल थीं। कृत्रिम व्याकरण का आवरण तब नहीं ओढ़ा था रचनाओं नें।
कितने ख़ूबसूरत दिन थे न? नहीं! मेरा आज भी बहुत खूबसूरत है।
मामा कहते हैं जिस पल में हम जीते हैं वही हमारे जीवन का सबसे सुनहरा पल होता है। जो बीत रहा है वो कभी नहीं आएगा।
इतने दिनों में अब तक अपना वादा नहीं पूरा कर पाया। पता नहीं मेरा कुछ लिखा हुआ मेरे गुरुजनों ने पढ़ा होगा या नहीं, ये भी नहीं पता कि मेरा वादा पापा को याद है या नहीं, पर लिखना थमा नहीं है। मुझे कितना वक्त लगेगा पापा से किया गया वादा पूरा करने में, नहीं जानता लेकिन जाने क्यों उन बातों के याद आने भर से ही मेरे हाथ कलम की ओर बढ़ जाते हैं और फिर मैं लिखने बैठ जाता हूँ कुछ कहे-अनकहे शब्द....उसी एक वादे के लिए।।

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