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शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

झुलस रहा है देश

मेरे देश के नेताओं की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता, अहिंसा के नाम पर किसी भी हद तक जाकर आतंक और आतंकवाद का समर्थन कर स्वयं को उदारवादी या अहिंसक कहना, मार्क्सवाद की कुछ घटिया और  बक़वास किताबें पढ़ कर ईश्वर को झूठ और देश को कुरुक्षेत्र समझने की परम्परा ने देश को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है।
धर्मनिरपेक्षता तो मेरे समझ में आज तक नहीं आयी। जिस देश ने विश्व को "वसुधैव कुटुम्बकम्" और "विश्व बंधुत्व" का पाठ पढ़ाया वहाँ सेक्युलर होने का अद्भुत चलन चल पड़ा है। ये नेताओं की भारतीय जनता के विभाजन की ओछी नीति के अतिरक्त कुछ नहीं,लोग धर्मो में बटेंगे तो नेताओं का धंधा चलता रहेगा।
वैसे आज- कल अपने धर्म की बुराई करना ट्रेंड में है और इस काम में हिंदुओं को महारत हासिल है। मीडिया में चमकते रहेंगे जब तक अपने धर्म की निंदा करेंगे। मार्कण्डेय काटजू को तो अक्सर आप पढ़ते ही होंगे, अक्सर अपनी भड़ास निकलते रहते हैं देश और धर्म के प्रति। गौमांस खाना सेक्युलर होना है, ये उन्ही का कथन है। पता नहीं कैसे जज बन गए थे महाशय, लगता है ठीक ढंग से उन्होंने विधि दर्शन नहीं पढ़ा है।
एक हैं शशि थरूर। अपने पत्नी को पाताल पहुँचाने के बाद याकूब की फाँसी को विधिक हत्या बता रहे हैं। एक हैं दिग्विजय सिंह; इन्हें भी याकूब की फाँसी असंवैधानिक लग रही है। इनके नज़र में सैकड़ों लोगों की हत्या करने वाला दरिन्दा नेक इंसान और सरकार शैतान लगती है। भारत में धर्म कहीं भी पीछा नहीं छोड़ता,यहाँ भी याकूब के समर्थकों को लगता है उसे मुसलमान होने की सजा मिली है। इस देश में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न किया जाता है किन्तु कैसे इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं देता। शाहरुख़, आमिर और सलमान ख़ान शायद हिन्दू नहीं हैं। हिंदुओं ने इन्हें सुपरस्टार बना दिया, भगवान् की फ़ोटो घरों में हो न हो इनकी जरूर मिल जायेगी।
हाँ! एक ग़लती हुई है, सबने अपने-अपने घरों में याक़ूब, क़साब, अफज़ल गुरु, हाफिज सईद और मुफ़्ती के फोटोज नहीं टाँगे ...इसलिए ये हिन्दू सेक्युलर नहीं हैं। जिन्होंने इन्हें आतंकवादी कहा वे सेक्युलर नहीं हैं। कट्टरवादी है।
अद्भुत प्रवित्ति के लोग रहते हैं मेरे देश में। इंसान होकर लोग नहीं सोचते, हिन्दू और मुसलमान होकर सोचते हैं। फिर एक दुसरे के लिए विषवमन करना अप्रत्याशित भी नहीं, स्वाभाविक है।
मैं सनातनधर्मी हूँ, आप कट्टर हिन्दू कह सकते हैं। मजारों पर झुकता नहीं, सूफी, मौलाना किसी के दर्शन को नहीं पढ़ा। कुरान पढ़ा है किन्तु महिलाओं पर इस्लाम की सोच से मतभेद है
पर मेरा एक बहुत क़रीबी दोस्त मुसलमान है। फोन पर बात मैं बेहद कम करता हूँ पर उससे मेरी घण्टों बात होती है। उससे बहुत सारी ऐसी बातें भी कहता हूँ जो मैं हर किसी से नहीं करता। पर इसमें मेरा धर्म कभी बीच में नहीं आया।
पूजा की अलग-अलग पद्धतियां जब दिलों को बाँटने लगें तो समझ लेना कि तुम्हारे अन्दर की इंसानियत ख़त्म हो रही है।
पर मैं तथाकथित सेक्युलर कहलाना नहीं पसंद करूँगा।
अज़ीब सी बात है न लोग जानवरों को इंसान और इंसानों को भेड़ बकरियां समझते हैं जब जी किया हलाल कर दिया। अभी पंजाब के गुरदासपुर में एक आतंकी हमला हुआ, जवान शहीद हुए, नागरिकों को जानें गईं और देश एक बार फिर रक्तरंजित हुआ। कुछ दिन बाद जब कोई आतंकी पकड़ा जायेगा तो मेरे देश के सेक्युलर और उदारवादी लोग उसे बचाने के लिए जान झोंक देंगे।
हमारे जान की कोई कीमत नहीं,कोई गद्दार आए और हमें गोलियों से छलनी कर दे फिर भी हमारे कुछ सेक्युलर मानवतावादी भारतीय उन आतंकियों  लिए धरने पर बैठ जाएंगे।
कश्मीर की घाटी रोज खून से सींची जाती है। हमारे जवान शहीद होते हैं, उनकी सुरक्षा के लिए जिन्होंने कभी खुद को भारत का हिस्सा ही नहीं माना। भारतीय सेना हर आपदा में कश्मीरियों के हिफाज़त के लिए खड़ी रही पर इन्होंने अक्सर सेना पर पत्थर बरसाए। पाकिस्तान खुद को पाल नहीं सकता पर कश्मीर से दूर रहने की हमें नसीहत देता है। मार्क्सवादियों ने कितना कचरा किया है देश का ये तो जगजाहिर है। मार्क्सवाद तो शुरू होता है सरकार के साथ मतभेद से लेकिन कब नक्सलवाद में बदलते हैं इनके तरीके पता नहीं चलता। पश्चिम बंगाल, बिहार,झारखण्ड,छत्तीस गढ़, असोम सब तो नक्सलवाद की आग में जल रहे हैं। वामपंथियों को सरकार से अकारण ही समस्या होती है। सरकार के अच्छे कामों पर भी वीभत्स भर्त्सना करते हैं। वास्तव में इन्हें लोकतंत्र की संप्रभुता से समस्या होती है। इन्ही की वजह से रोज जवान मर रहे हैं निर्दोष जनता मर रही है क्या इन अमानुषों को मृत्युदण्ड देना असंवैधानिक है? अमानवीय है?
मानवाधिकार तो मानवों के लिए हैं न पिशाचों को भी ये अधिकार देना समझ से परे है।
कभी-कभी लगता है देश विभाजित है अलग-अलग मुद्दों पर। संसद में राज्य सभा हो या लोक सभा दोनों बच्चों की पाठशाला लगते हैं। राज्यसभा में तो पिछले कुछ दिनों से ऐसी हरकतें हो रहीं हैं जिन्हें देखकर शर्म आती है कि ये हैं हमारे देश के नेता। निरर्थक बहस के लिए समय है पर सरकार के साथ सार्थक विषयों पर बहस से समस्याएं हैं। ये संसद का हाल है। वामपंथी होते ही सत्ता रूढ़ सरकार दुश्मन हो जाती है। फिर देश द्वितीयक हो जाता है और अराजकता प्राथमिक।
आज मन बहुत खिन्न है। ऐसा लग रहा है कि चारो तरफ आग लगी है और मेरा देश जल रहा है। धर्म,अराजकता,नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, आतंकवाद ने घेर लिया है देश को......इसकी लपट में आम आदमी झुलस गया...मरणासन्न है...नेताओं के पास हज़ार मुद्दे हैं पर काम का एक भी नहीं...राष्ट्रीयता जैसी कोई भावना नहीं दिख रही है....कोई हिन्दू है कोई मुसलमान है पर इन्सान दूर-दूर तक नहीं दिख रहे हैं.....दिख रही हैं आग की लपटें जिनसे इंसानियत और वतनपरस्ती झुलस रही है....

बुधवार, 29 जुलाई 2015

तेरा-मेरा झूठा सच

मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछती भी हूँ बिज़ी हो? आपका फिर वही रटा-रटाया जवाब नहीं! तुम्हारे लिए नहीं।
आप सच में मुझे कभी याद करते हैं? कुछ वजूद है मेरा आपके लाइफ में?


अब तो हद हो गई। पिछले दस दिनों से आपने बात नहीं की। न फेसबुक न व्हाट्सप न स्टीकर्स, क्या हुआ है आपको?
कोई और है क्या आपकी ज़िन्दगी में?

मुझसे मन भर गया? क्यों खेल रहे हो मेरे जज्बातों के साथ? ख़त्म क्यों नहीं कर देते सब कुछ?
ख़ैर! इस रिलेशनशिप में तो मैं हमेशा अकेली ही थी, कभी आपकी साइड से कुछ था ही नहीं। प्यार नहीं! दोस्ती या कुछ दोस्ती से ज़्यादा?

सुनो मैं बहुत प्यार करती हूँ आपसे।कोई हो आपकी लाइफ में तो प्लीज़ बता देना मैं भूलकर भी याद नहीं करुंगी आपको। वैसे भी मेरे पास खुद के लिए वक्त कम है। मेरी शादी हो ही जाएगी कुछ दिनों में। कोई अजनबी ज़िंदगी भर के लिए मेरी किस्मत में मढ़ दिया जाएगा।जबरदस्ती का रिश्ता निभाना है मुझे उम्र भर के लिए। किसी ब्लैक एंड व्हाइट सेट के साथ मुझे ढकेल दिया जाएगा किसी कोने में हमेशा के लिए। मेरी सारी डिग्रियां मेरी ही तरह सड़ेंगी किसी कोने में।

आप तब तक फेमस हो जाओगे। टीवी पर भी आप दिखोगे पर मैं चैनल बदल दूंगी।आपको कभी पलट कर नहीं देखूंगी। आपकी किताबें कभी नहीं पढ़ूगीं।अख़बारों में भी आपके आर्टिकल्स नहीं पढ़ूंगी।
आपको सब चाहते हैं पर मेरे साथ ऐसा नहीं है, बहुत अकेली हूं मैं।आपसे बात करना चाहती हूँ पर आप बात तक नहीं करते।
आप मेरे साथ ऐसा करते हैं या सबके साथ?
लाइब्रेरी, क्लास, पढ़ने और लिखने के अलावा कुछ करते हैं आप?

कभी तो फ्री होते होंगे तब मुझसे बात क्यों नहीं करते? आई लव यू हद से ज्यादा। सॅारी आज मैंने आपको कुछ ज्यादा सुना दिया। मैं बहुत बुरी हूं हर बार आपको परेशान करती हूँ पर अब नहीं करूंगी। गुड बॅाय!



क्या हुआ? सॅारी यार! नेटवर्क नहीं है यहाँ। और अब तुम मेरे रिसेंट कॅाल लिस्ट में नहीं हो। मैंने सेट फार्मेट किया था तुम्हारा नंबर मिट गया। कहीं और नोट भी नहीं है।

तुम ऐसे क्यों कह रही हो? मैं ऐसा ही तो हूं।मुझे मां से बात किये हुए कई दिन बीत जाते हैं। मेरे सारे दोस्त मुझसे इसी वजह से नाराज ही रहते हैं। मैं किसी से बात नहीं करता।शायद फोन पे बात करना अच्छा नहीं लगता मुझे।

तुम कभी-कभी अजीब सी बातें क्यों करती हो? तुम सेल्फ डिपेन्डेंट हो, अच्छी सैलरी मिलती है। बालिग़ हो तो तुम क्यों किसी के साथ जबरदस्ती ब्याही जाओगी। मना कर देना सबको जब तक तुम्हारे पसंद का लड़का तुम्हें न मिले।

पसंद की तो बात मत करो आप।पसंद तो सिर्फ आप हो मुझे , मुझसे शादी करोगे?

यार प्लीज़! कोई और बात करें? जानती हो मैंने एक नयी कविता लिखी है सुनोगी?

रहने दो, ज़िन्दगी कविता हो गयी है अब कविताओं से चिढ़ होती है। कभी तो सीधा जवाब दे दिया करो..सॅारी यार! मैं तुम्हारे साथ कभी नहीं रह सकता, मैं खुद के भी साथ नहीं हूं, किसी अनजान से रास्ते की ओर कदम बढ़ते चले जा रहे हैं। वक्त धीरे-धीरे मुझे मुझसे दूर करता जा रहा है। ऐसे में मैं तुम्हें कोई उम्मीद नहीं दे सकता।

किसने कहा मुझे आपसे कोई उम्मीद है? अब इतना तो आपको समझ ही चुकी हूं।
एक्चुअली जानते हैं आपकी प्रॅाब्लम क्या है?

आप न कभी किसी रिलेशनशिप को हां सिर्फ इसलिए नहीं करते क्योंकि आपके साथ जो गुड ब्वाय वाला टैग लगा है न उसे खोने से डरते हैं। तभी शायद आपकी कोई गर्लफ्रैंड कभी थी नहीं न होगी,
बहुत मुश्किल से खुद को सम्हालती हूं । कोई इमोशन नाम की चीज़ है आपके दिल में?

ऐसा कुछ नहीं है....

बॅाय! अब मैं आपसे कभी बात नहीं करूंगी।

सुनो!

कहो!

जो तुम कह रही हो वो सच नहीं है।

तो सच क्या है?

कुछ नहीं। 'ब्रम्ह सत्यम् जगत मिथ्या'।

बॅाय! अलविदा।
रुको!

नहीं अब कोई फायदा नहीं है ......

कॅाल डिस्कनेक्टेड....

कॅाल रिजेक्टेड....काश! मुझे आज सुन लेती....कुछ बताना था..लेकिन क्या बताना था....मुझे क्या पता...तब की तब देखते।
- अभिषेक शुक्ल

सोमवार, 27 जुलाई 2015

लौट आओ लाल (माँ भारती पुकार रही है)


इतनी जल्दी नहीं जाना था सर आपको, सुरक्षित नहीं है आज भी भारत....आपकी जरुरत थी इस देश को...आपके अनुभव और मार्गदर्शन में भारत अभी और ऊँचाई छूता...नए कीर्तिमान स्थापित करता....आप चले गए तो डर लग रहा है..आपकी कमी हमेशा खलेगी क्योंकि राष्ट्र को जीवन समर्पित करने वाले लोग अब गिनती के बचे हैं....एक और सितारा कम हो गया...एक युग समाप्त हो गया....आपके छोटे-छोटे वक्तव्य हमारे बड़े-बड़े सपनों की नींव हैं..धर्म और जातियों में विभाजित भारतीय जनता को सबसे पहले आपने ही कहा कि इंसान बन जाओ पहले...बाद में हिन्दू या मुसलमान होना...एक सच्चे राष्ट्रभक्त नहीं रहे..एक और सितारा टूटा...एक और सपूत सो गया...एक महान व्यक्तित्त्व अब नहीं रहा....सर! आप देशभक्त हैं न? ईश्वर से कह कर एक बार फिर से आना भारत में...अपने इसी रूप में.....हम भारतीय हमेशा आपके आभारी रहेंगे...लौट आइये सर!
आपकी मिट्टी आपको बुला रही है...देश आपके पुनर्जन्म की प्रतीक्षा में है...माँ भारती आपको बुला रही है।

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

देश रौशन रहे, हम रहें न रहें..















हम खड़े हैं यहाँ हाथ में जाँ लिए
बुझ रहे हैं घरों में ख़ुशी के दिए,
देश रौशन रहे हम रहे न रहे
आखिरी साँस तक हम तो लड़ने चले,
हम तो परवाने शमां  में जलने चले।

हम को परवाह हो क्यों जान की
हम तो बाजी लगाते हैं प्राण की,
मोहब्बत हमें अपने माटी से  है
है शपथ हमको अपने भगवान की।

हाथ में जान लेकर निकलते हैं हम
मौत के देवता से उलझते हैं हम,
राहों में हो खड़ी लाख दुश्वारियां
अपने क़दमों से उनको कुचलते हैं हम।

हर तरफ दुश्मनों की सजी टोलियाँ
हर कदम पर लगे सीने में गोलियाँ
मौत की सज़ रही सैकड़ों डोलियाँ,
हम तो खेलेंगे अब खून की होलियाँ।

है कसम माटी की हम मरेंगे नहीं
चाहे तोपों की हम पर बौछार हो
कतरा-कतरा बहेगा वतन के लिए
आख़िरी साँस तक यही हुँकार हो।

सीमा पर हर क़दम काट डालेंगे हम
मौत अग़र पास हो उसको टालेंगे हम,
साँस जब तक चलेगी  क़दम न  रुकेंगे
यम के आग़ोश में प्राण पालेंगे हम।

इश्क़ होगी मुकम्मल वतन से तभी
जब तिरंगे में लिपटे से आएंगे हम
देश रौशन रहे हम रहें न रहें,
मरते दम तक यही गुनगुनाएंगे हम।

(तस्वीर : PTI)

( देश के उन प्रहरियों के नाम मेरी एक छोटी सी कविता... जिनकी वजह से देश की अखण्डता और सम्प्रभुता सुरक्षित है..जो अपने घर-परिवार से हज़ारों मील दूर बर्फ़ीले पहाड़ियों पर जहाँ मौत ताण्डव करती है दिन-रात खड़े रहते हैं, रेत के मैदानों में, आग उबलती गरमी में खुद जलते हैं पर अपनी तपन से हमें ठंढक देतें हैं....उनके लिए एक अधकचरी सी_टूटी-फूटी कविता...एक  अभिव्यक्ति 'जवानों के लिए' )

रविवार, 12 जुलाई 2015

आत्ममंथन



जब ज्ञान का दीपक बुझने लगे
जब तम की ऐसी आँधी हो,
जब विपद विपत् सा लगने लगे
मन ही मन का अपराधी हो,
तब बंद कपाटों को खोलो
और रश्मि धरा पर आने दो,
जो तिमिर उठे अंतर्मन में
उनका अस्तित्व मिटाने दो।

निशा घेर ले जिस मन को
उसे शान्ति कहाँ मिल पाती है?
दिशा हीन सा मन भटके
पर मुक्ति नहीं मिल पाती है;
सुख दुःख की रलमल सी झाँकी
नयनो के आगे आती है,
मृगतृष्णा में घोर वितृष्णा
मन को सहज लुभाती है।

स्वायत्य सखे! तुम अब जागो
मन से तम की चादर खींचो
जीवन प्रतीत हो मरुस्थल
तो मन को सागर से सींचो,
सोचो! तुमसे अनभिज्ञ है क्या
ये धरा, गगन या दूर क्षितिज
मानव जब सद्संकल्प करे
यह जग कैसे न रहे विजित ??

(हरिद्वार गया था कुछ दिन पहले_ऐसे दर्शन तो यहाँ राह चलने वाले दे देते हैं)

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

गुज़ारिश

बहुत कुछ कहना चाहूँ पर
कहा कुछ भी नहीं जाए,
रब से ये गुज़ारिश है हलक के
पार कुछ आए
यूँ गुमसुम सा रहूँ कब तक
बता दे तू मेरे मौला!
कहीं तेरे बेरुख़ी से दिल
बेचारा हार न जाए।।

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

विद्वता और अहंकार

कुछ व्यक्ति जन्मजात विद्वान होते हैं।विद्वान तो छोटा शब्द है कुछ व्यक्ति विद्वता की पराकाष्ठा होते हैं। कभी स्वघोषित तो कभी एक वर्ग विशेष द्वारा मान्यता प्राप्त। इन्हें अपनी साधना पर इतना अहंकार होता है कि जैसे ये विशेष हों और बाकी अवशेष हों।
इन विद्वानों के कुछ सिद्धान्त होते हैं और कुछ आदर्श सामान्यतः अपने ही वंश के किसी महापुरुष की बातों को सिद्धान्त मानते हैं और उन्हीं के सिद्धान्तों पर चलने की बात
करते हैं, किन्तु यथार्थ इससे बहुत भिन्न होता है। वास्तव में सिद्धान्त नितांत गोपनीय विषय है जिसे आचरण में उतरा जाता है न कि उनका ढिंढोरा पीटा जाता है। व्यक्ति के आचरण से उसके सिद्धान्त परिलक्षित होते हैं न कि उनका स्वांग भरने से।
हर व्यक्ति में वंश विषयक अहंकार होता है, अपने पूर्वजों के सद्कृत्यों पर गर्व होता है, अपने पिता पर अभिमान होता है। ऐसी भावनाएं बुरी नहीं हैं किन्तु जिन आदर्शों पर चलकर
पूर्वज महान कहलाये उन्हें अनुचित विधि से व्याख्यायित करना अपराध है।
जितने भी प्रसिद्ध और महान लोग हुए हैं उनके शिष्य उतने महान और प्रसिद्ध नहीं हो सके क्योंकि उन्होंने अपने गुरुदेव के उपदेश तो सुने पर उन आचरण करने की जगह उन वक्तव्यों के व्याख्याता बन गए। व्याख्याता बनते ही सृजनता समाप्त, उन्नति समाप्त। जो विषय आचरण के हों उन्हें व्याख्यायित और प्रचारित करने लगे तो स्वयं बृहस्पति भी यशहीन हो जाएँ फिर सामान्य मानव की बात ही क्या है।
जिसने कहा कि- "मेरा ये सिद्धान्त है" वास्तव में उसका कोई सिद्धान्त नहीं होता है।
सिद्धान्त वादियों की एक विशेषता होती है, ये परिपक्व और पूर्ण केवल स्वयं को मानते हैं। कोई अन्य इनकी भांति कार्य नहीं कर सकता। इनके निर्णय विधि सम्मत होते हैं और
अन्य गलतियों के पोटली होते हैं।ये जो करते हैं वही उचित होता है और दूसरे केवल गलत होते हैं।हों भी क्यों न, विद्वता और बुद्धिमत्ता के परिचायक तो केवल यही हैं।
इनके कुछ चिर-परिचित कथन होते हैं-
मेरा ये सिद्धान्त है। मुझसे ज्यादा जानते
हो?
तुम क्या जानो? मुझसे अधिक उनके बारे में
जानोगे?
तुम्हें पता क्या है? मुझसे ज्यादा पढ़े हो? मुझसे
ज्यादा अनुभव है?
इत्यादि-इत्यादि।
अजीब लगता है न? किस बात का दम्भ, किस
हेतु अहँकार? ज्ञान की कोई सीमा होती है
क्या?
कभी-कभी इनकी बातें सुनकर श्रोताओं को लगता है कि कानों में इन्ही के सामने रूई ठूंस ले पर क्या करें औपचारिकता और शिष्टाचार भी कोई चीज़ है। इन व्यक्तियों का एक कथन होता है-"मुझे झूठ से सख़्त नफरत है।" कुछ भी कर लो पर मुझसे झूठ मत बोलो झूठे लोगों से मुझे नफरत है। वास्तव में एक झूठ तो ये दुनिया भी है। पढ़ा
नहीं अपने क्या 'ब्रम्ह सत्यम् जगत् मिथ्या?'
इस हिसाब से तो समस्त संसार घृणा के योग्य है क्योंकि जिसे हम संसार कहते हैं वास्तव में तो वो है ही नहीं।
सब सपना है, एक पल में सब हमारे आँखों के
सामने होते हैं अगले ही पल सब ओझल...ये संसार भ्रम नहीं, झूठ नहीं तो और क्या है? क्या नफरत है आपको इस झूठे ज़ीवन से? सत्य बहुत सुन्दर होता है किन्तु कुछ सत्य हमें
जानना भी नहीं चाहिए। ऐसे सत्य तो अकारण ही सबसे वितृष्णा पैदा करते हैं। जीवन झूठ और सच का संगम है, यहाँ विरले ही हरिश्चंद्र मिलते हैं और जो मिल जाते हैं वो
स्वघोषित हरिश्चंद्र होते हैं यथार्थ में उन्हें भी झूठ से प्रेम होता है तभी तो वे इतने महान पद(हरिश्चंद्र) पर होते हैं।
एक और ख़ास बात होती है इनमें,गुस्सा इनकी नाक पर होता है। कब किस बात बार भड़क जाएँ परमात्मा भी नहीं जानते। इनका मिज़ाज़ बड़ा गजब का होता है। खुश हों तो
सिर पे बिठा लें और नाराज़ हों पताल में भी जगह न दें। तात्पर्य यह कि इनका स्वाभाव बड़ा अव्यवस्थित होता है। कोई भी इनका कोपभाजन बन सकता है। ऋषि दुर्वासा के ये
अनुयायी हैं इन्हें खुश रखना भी कठिन काम है। इनसे जितनी दूरी रहे उतना ही अच्छा है क्योंकि यथार्थ में इनके मापदण्डों पर ये स्वयं भी खरे नहीं उतरते। ये किसी को भी अपमानित कर सकते हैं कहीं भी, कभी भी। आपके किसी अपने ने कोई गलती की हो भले ही उसकी गलती में
किञ्चिद मात्र आपका योगदान न हो, आपका कोई मतलब भी उससे न हो फिर भी ये आपको उसकी गलती के लिए सुनाएंगे। आपके दुखती रग पर हथौड़ा जरूर चलाएंगे,भले ही उस आग में स्वयं भी जलें पर त्वरित रूप से तो आप मानसिक आघात के लिए तैयार तो नहीं होते। ऐसे व्यक्ति बुरे नहीं होते इनके अंदर भी बहुत अच्छा इंसान होता है।बुरी होती है इनकी मनोवृत्ति जो इनके सारे किये कराये पर पानी फेर देती है। स्वघोषित लोकपाल वाली भ्रामक स्थिति इन्हें औरों की नज़र मेंबुरा बना देती है।
हम प्रायः देखते हैं कि हमें सुखद अनुभव कम याद
रहते हैं और बुरे अनुभव ज्यादा। यह मानवीय प्रवित्ति है कि किसी का स्नेह,प्रेम भूल जाता है और क्रोध आजीवन याद रहता है क्योंकि अकारण क्रोध किसी को सहजता से
स्वीकार्य नहीं होता। सारी सुकीर्ति,सुयश मिट्टी में मिल जाती
है पल भर के अमर्यादित आचरण से।विद्वता श्रेष्ठतम् वरदान है प्रकृति का। सफलता आपके तपस्या का परिणाम है किन्तु ये दोनों निरर्थक हैं यदि आप व्यवहारिक नहीं हैं। थोड़ी समझ और थोड़ी मेहनत करके कोई भी सफल हो सकता है। कुछ किताबें कुछ सत्संग करके तथाकथित ज्ञानी भी बन सकता है जिसे जनता विद्वता का नाम दे देती है
किन्तु व्यवहारिकता की कोई पाठशाला नहीं होती। इसे सीखने के लिए विनम्र होना पड़ता है। शून्य से सीखना पड़ता है। आपका गुरु आपके घर से कूड़ा उठाने वाले से लेकर सड़क पर भीख़ मांगने वाला छोटा बच्चा भी हो सकता है।
इसे सीखा नहीं आत्मसात किया जाता है।स्मरण रहे लोग आपसे आपके सफल होने की वजह से नहीं जुड़ते, सब सफल होते हैं अपनी-अपनी भूमिका में। आपकी व्यवहारिकता और
विनम्रता के कारण लोग आपसे जुड़ते हैं। कहीं से भी आपके वास्तविक स्वरुप का उन्हें ज्ञान हो जाये तो आपसे दूर होते उन्हें समय नहीं लगेगा। मानव होना अपने आप में एक वरदान है। विधाता के इस वरदान का अपमान न करें।
मानवता क्रोध,अहँकार,वितृष्णा,घृणा जैसी
भावनाओं का नाम नहीं केवल प्रेम, विनम्रता
और व्यवहारिकता का नाम है। इनसे अलग व्यक्ति सब कुछ हो सकता है परइंसान नहीं। कुत्सित मनोवृत्ति आपको
 जानवर बना सकती हैं इंसान नहीं।निर्णय आपको करना है कि आपको मानवता से प्रेम है या पैशाचिकता से? आपके सामने दो विकल्प हैं यह तो आपकी मनोवृत्ति ही जाने कौन
सा मार्ग आपको अभीष्ठ है।नीति कहती है कि निम्न मनोवृत्ति व्यक्ति के उत्थान में अवरोध उत्पन्न करती है.....आपको
पतन से स्नेह तो नहीं?