यूँ तो ख़ामोश हूँ मैं
पर
आती है आवाज़ कहीं से
मेरी ही
रह-रह कर;
घबराहट होती है
अपनी आवाज सुनकर,
तड़पता हूँ अक्सर
अपने दर्द से,
चोट भी मुझे लगती है
और चीख भी
मेरी निकलती है.
घुट रहा हूँ
पर
हस -हस कर.
क्या कहुँ?
रोना मक्कारी लगता है
हंसना
मुमकिन नहीं
टूटते रिश्तों को
जोड़ना मुश्किल है
और
तोडना और भी मुश्किल.
क्या करूँ ?
हसूँ
तो दुनिया,
रोऊँ तो दुनिया।
पर
आती है आवाज़ कहीं से
मेरी ही
रह-रह कर;
घबराहट होती है
अपनी आवाज सुनकर,
तड़पता हूँ अक्सर
अपने दर्द से,
चोट भी मुझे लगती है
और चीख भी
मेरी निकलती है.
घुट रहा हूँ
पर
हस -हस कर.
क्या कहुँ?
रोना मक्कारी लगता है
हंसना
मुमकिन नहीं
टूटते रिश्तों को
जोड़ना मुश्किल है
और
तोडना और भी मुश्किल.
क्या करूँ ?
हसूँ
तो दुनिया,
रोऊँ तो दुनिया।
हसूँ
जवाब देंहटाएंतो दुनिया,
रोऊँ तो दुनिया।.........बहुत सुन्दर...
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंइस उलझन से खुद ही पार पाना होता है ...
जवाब देंहटाएंकल 07/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार...ऐसे ही निरंतर स्नेह की आप सबसे अपेक्षा है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव..
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